पुनीत गुप्ता, संवाददाता
दिल्ली।। दिव्यांग बच्चो के लिए बदलती दुनिया, दिव्यांग बच्चों को अक्सर इस समाज में अलग नजर से देखा जाता है और उनको समाज में दयनीय नजरों से अपनाया जाता है समाज में उनको एक समान नजर से ना देखे जाने के कारण दिव्यांग व विकलांग बच्चों को बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है,संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक व सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने भारत में विकलांग बच्चों की शिक्षा स्थिति के बारे में एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है।
जिसमें कहा गया है भारत में विकलांग बच्चों को भी मुख्य धारा की शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा बनाने के लिए माता-पिता, अभिभावक और शिक्षकों के नज़रिए में बदलाव बहुत ज़रूरी है. भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने अपने संदेश में आशा व्यक्त की कि “यूनेस्को की स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2019 से इस संबंध में हमारी समझ बढ़ेगी और इससे शिक्षा प्रणाली को विकलांग विकलांग बच्चों की सीखने की ज़रूरत को बेहतर जवाबदेही देने में मदद मिलेगी.
इसने हमें किसी को भी पीछे न छोड़ने के अपने सामूहिक उद्देश्य की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति करने और सभी बच्चों और युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए समान अवसर प्रदान करने में सक्षम बनाना होगा। स्पेशल और नार्मल बच्चे अब एक साथ पढ़ सकते है, इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि स्पेशल बच्चों को अलग नज़रिया से ना देखा जाये।
सरकार की नई गाइडलाइन के अनुसार हर स्कूल में स्पेशल एजुकेटर की नियुक्ति होनी चाहिए। स्पेशल एजुकेटर के लिए भी यह चुनौतीपूर्ण है क्योकि स्पेशल बच्चे को नार्मल बच्चों के साथ पढ़ाना अपने आप में बहुत बड़ा टास्क है। दिव्यांग बच्चो के जीवन में बड़ा बदलाव लाने वाली हेलन केलर अक्सर कहा करती थीं, ‘आंखें होते हुए भी न देख पाना दृष्टिहीन होने से कहीं ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है’।
हेलेन केलर के विचार, उनका जीवन, समाज के प्रति सोच सदैव मेरे समीप रहे! बचपन से ही कुछ कर गुजरने के ज़ज्बे ने मुझे सामाजिक रूप से दिव्यांग ,मानसिक रूप से विछिप्त बच्चों के जिन्दगी को प्रकाशमय करने का साहस हेलेन केलर को समझ और पढ़ कर मिला। मेरे पास अपने कैरियर को लेकर कई सारे विकल्प थे, लेकिन मैंने अपने दिल की सुनी, और अपने आप को समाजिक कार्यों ,कमजोर ,वंचित लोगो के जीवन को नए आयाम देने के लिए इस क्षेत्र को चुना
मेरे दिल और दिमाग़ में सामाजिक रूप से दर किनार दिव्यांग, अपाहिज और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों के जीवन को सुधारने, उनको मुख्य धारा में जोड़ने की ललक ने मुझे इनके लिए कुछ करने को सदैव प्रोत्साहित किया! बचपन से ही मुझे सामाजिक कार्यो ,गरीब, मजलूम और मानसिक रूप से कमजोर बच्चों की पीड़ा दिल को उद्देलित करती रही। मात्र उन्नीस साल की उम्र में उन बच्चों के बेहतर शिक्षा, उनको जिंदगी का ककहरा सिखाने ,के ज़ज्बे ने साई स्पेशल अकेडमी की नींव रखने को प्रेरित किया।
जीवन के तमाम उतार चढ़ाव, सामाजिक मर्यादाओं, सीमित संसाधनों के बावजूद मैं इन विचारों को लेकर सदैव दृढ़ संकल्प रही। बिकराल परिस्थितियों के बावजूद मेरे माता -पिता का चट्टान की तरह मेरे विचारों के साथ रहना , गुरुजन और कुछ अमूल्य मित्रो के सहयोग और सबसे अधिक मेरे साई बाबा की असीम अनुकम्पा से मैंने ” साई सारथी स्पेशल स्कूल ” की स्थापना की।