शिवानी मोरवाल, संवाददाता
नई दिल्ली। कुछ महीने पहले ही दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट का एक फरमान आया था, जिसमें साफ तौर पर कहा गया था कि दिल्ली में रेलवे ट्रेक के पास की जितनी भी झुग्गियां और अवैध निर्माण की कालोनियां बसी हुई हैं, उन्हें तोड़ दिया जाये। उसके बाद उनमें रहने वाले सभी निवासियों के मन में मकान तोड़े जाने की आशांक बन गई थी। बचाव को लेकर लोगों ने गुहार लगाई। उन्होंने अपनी परेशानी सुप्रीम कोर्ट को बताई। कोर्ट ने भी झुग्गियों को तोड़ने की तरीख आगे बढ़ा दी। उसके बाद शालीमार बाग में एक ऐसा ही मामला सामने आया, जिसने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है।
इस बार फरमान सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नहीं, बल्कि डीडीए यानी दिल्ली विकास प्रधिकरण की तरफ शालीमार बाग की एओ ब्लाक की अवैध कालोनियों के लिए आया है। वहां की एक दीवार पर नोटिस चिपका दी गई है। उसके साथ वहां रहने वाले हजारों लोगों की नामों की सूची भी है। इस बारे में जब दिल्ली दर्पण टीवी ने तहकीकात की तब पाया उस नोटिस और लिस्ट की वजह से लोग परेशान हो गए हैं। उन्होंने बताया कि वे इस इलाके की झुग्गियों में 2 से 3 साल पहले सर्वे किया गया था। जिसमें सभी लोगों के आधार कार्ड और पहचान पत्र को देखते हुए नाम लिखा गया था। उसके बाद ही यह नोटिस यहां लगाया गया है।
कुछ लोगों ने बताया कि नोटिस अनुसार जो लोग 2012 के पहले से रह रहे हैं, वे यहां सुरक्षित हैं। उसके बाद के समय रहने वाले लोगों को अपना घर छोड़कर जाना होगा। ऐसे में इस नोटिस ने लोगों को दुविधा में डाल दिया है। कुछ लोगों की यह भी शिकायत है कि उनके नाम गलतियां हैं। कई लोगों के नाम और पते में गलतियां हैं। उन्हें वे पीतमपुरा के सर्वे में सेंटर आकर ठीक करवाने को कहा गया है।
इस वजह से लोग परेशान हो गए हैं कि जब उनका नाम लिस्ट में है और उसमें गलतियों को सुधारने के लिए सरकारी कार्यालय के चक्कर क्यों लगाने के लिए क्यों कहा जा रहा है। वे अपना रोज का कामधंघा छोड़कर कैसे जा सकते हैं? वैसे ही लॉकडाउन की वजह से उनके कामकाज प्रभावित हो चुके हैं। उपर से यह नई मुसिबत आ गई है। जिनके नाम नहीं हैं वे कुछ ज्यादा ही परेशान हो गए हैं। वे भी गुस्से में हैं। उनका कहना है अगर झुग्गियां खाली करवाई जाती है तो हम चुप नहीं बैठेगें हम सड़को पर उतरेंगे और दिल्ली वालों को अपनी ताकत दिखायेंगे कि एक इंसान अपना घर बचाने के लिए किस हद तक जा सकता है।