जूही तोमर, संवाददाता
नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने वर्तमान में कोरोना संक्रमण और ऑक्सीजन की कमी से निपटने के लिए सेना को बुलाने के निर्देश देने से इनंकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि हम नहीं चाहते हैं कि सेना / सशस्त्र बलों में कोरोना वायरस जंगल की आग की तरह फैल जाए। अगर ऐसा होता है तो बड़ी समस्या हो सकती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जिस काम के लिए सेना का गठन किया जाता है, उसे पहले उस कर्तव्य के निर्वहन के लिए तत्परता से तैयार होना चाहिए।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ के समक्ष, अधिवक्ता आदित्य प्रसाद ने केंद्र सरकार के जवाब पर आपत्ति जताई कि वर्तमान में दिल्ली में इस मोर्चे पर सेना को तैनात नहीं किया जा सकता है। वकील ने कहा कि बिहार में सेना काम कर रही है, तो दिल्ली में क्यों नहीं।खंडपीठ ने उनके तर्क को खारिज करते कहा कि यह अच्छी सोच है कि सभी नागरिकों को सेना/सशस्त्र बलों पर भरोसा है लेकिन सेना के बीच वायरस फैलता है तो आप कल्पना नहीं कर सकते हैं कि कितनी बड़ी समस्याएं हमारे सामने होगी। खंडपीठ ने कहा कि सशस्त्र बलों के जवान छावनी क्षेत्रों और बैरकों में एक साथ रहते हैं।
केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को न्यायालय को बताया गया था कि दिल्ली में सेना 3 प्रमुख अस्पताल चला रही है, जिनमें से दो कोरोना के लिए समर्पित हैं। बेस अस्पताल में कुल 8,791 रोगियों का इलाज किया गया है और डीआरडीओ ने 950 बेड की सुविधा दी है। इसके साथ ही रक्षा मंत्रालय ने राजधानी में फील्ड अस्पताल स्थापित करने के लिए सेना नहीं लगाने का फैसला किया है क्योंकि देश भर में सशस्त्र बलों के संसाधनों का फैलाव हो रखा है। इससे पहले, दिल्ली सरकार ने भी राजधानी में आक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करने के अलावा ऑक्सीजन और आईसीयू युक्त बेड के साथ फील्ड अस्पताल बनाने के लिए केंद्र सरकार से सेना की मदद मांगी थी।