संवाददाता, दिल्ली दर्पण टीवी
मुंडका। दिल्ली की आम आदमी पार्टी का माहौल भी अब आम राजनैतिक पार्टियों जैसा हो चला है। दिल्ली की ज्यादातर विधान सभाओं में निगम पार्षदों और विधायकों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है लेकिन बाहरी दिल्ली की मुंडका विधान सभा में यह झगड़ा तो जगजाहिर है ही, साथ ही विधायक धर्मपाल लाकड़ा की राजनैतिक विरासत का वारिश कौन हो, इसे लेकर परिवार में भी चुनावों के दौरान से ही जंग जारी है। विधायक धर्मपाल लाकड़ा ने हालांकि किसी तरह अपने दोनों बेटों के बीच सुलह करवा कर यह साफ़ कर दिया है कि वे अपने बड़े बेटे सुनील को ही अपनी जगह आने वाले चुनावों में विधायक बनते हुए देखना चाहतें है। कई सार्वजानिक मंचों से वे कई बार इसकी घोषणा भी कर चुकें है और साफ़ कहते सुने जाते है कि वे चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते थे। लेकिन सुनील को राजनीती में आगे बढ़ने के लिए उन्हें चुनाव लड़ना पड़ा। और अब उनकी मंशा है उनकी जगह सुनील लाकड़ा ही मुंडका का विधायक बने।
विधायक धर्मपाल लाकड़ा की इस मंशा से आम आदमी पार्टी के कई कार्यकर्ताओं में रोष है। चर्चाएं चल रही है कि क्या आम आदमी पार्टी भी परिवारवाद की परम्परा को अन्य पार्टियों की तरह बढ़ावा देगी ? धर्मपाल लाकड़ा के पुत्र सुनील लाकड़ा अभी भी खुद को विधायक ही मानते है, विधायक की तरह ही व्यवहार करते है, और अधिकारीयों से भी वही डील करते है। कार्यकर्ताओं से ठीक से बात तक नहीं करते है। खबर है कि आप कार्यकर्ता अपनी यह नाराजगी पार्टी के शीर्ष नेताओं तक व्यक्त कर चुकें है। यही वजह है कि दिल्ली के सबसे अमीर विधायक को दिल्ली सरकर में अभी तक कोइ महत्वूपर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गयी है।
धर्मपाल लाकड़ा कई बार कहते सुने गए है कि वे चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते थे। खबर है की इस बात पर सुनील और नवीन के बीच यह विवाद शुरू हो गया की दोनों में से विधायक का चुनाव कौन लड़ेगा। दोनों भाईयों के बीच मचे इस घमासान को शांत करने के लिए न चाहते हुए भी धर्मपाल लाकड़ा को ही चुनाव मैदान में उतरना पड़ा और चुनाव लड़ना पड़ा। ज्यादातर कार्यकर्ता सुनील के व्यवहार से खुश नहीं है। चुनावों के बीच भी कार्यकर्ताओं को सुनील लाकड़ा ने यह कहकर खरी खोटी सुनाई थी कि टिकट की घोषणा होने के कई दिनों बाद तक भी कार्यकर्ता उनसे मिलने खुद चलकर क्यों नहीं आये ? जिला अध्यक्ष की अध्यक्षता में मुंडका में अपने चुनाव कार्यकालय में हुयी उस मीटिंग में कार्यकर्ताओं ने खुद को इतना अपमानित महसूस लिया था कि उस घटना की चर्चा अब तक होती रहती है।
बहरहाल किसी तरह धर्मपाल लाकड़ा ने चुनाव तो जीत लिया लेकिन जनता का मन नहीं जीत सके। चुनाव जीतने के बाद धर्मपाल लाकड़ा के दोनों बेटों बीच यह जंग शुरू हो गयी कि कार्यालय कौन संभालेगा ? कार्यकर्ताओं के अनुसार इस विवाद के चलते डेढ़ हफ्ते तक कार्यालय तक बंद रहा। चुनाव जीतने के बाद जनता का आभार व्यक्त करने की औपचारिकताएं ही हुयी। स्थानीय लोगों और कार्यकर्ताओं को कई दिनों तक यह समझ नहीं आया कि चुनाव जीतते ही कार्यालय क्यों बंद हो गया ? अपने दोनों बेटों के बीच यह मामला भी विधायक साहब ने किसी तरह परिवार के साथ बैठकर सुलझाया और जैसे तैसे कार्यालय की कमान भी सुनील को ही सौप दी।
मुंडका के लोग धर्मपाल ल3कड़ा के स्वभाव और साफगोई की भी तारीफ करते है। बेशक वे चुनाव जीतकर विधायक बन गए है, लेकिन इस जीत में उन्हें आनंद नहीं आया। आता भी कैसे ,जो राजनीति अपने ही परिवार में विवाद पैदा कर दे वह राजनीती भला कैसे रास आएगी। विधायक का चुनाव जीतने के लिए यदि उन्हें अपने घोर शत्रु व विरोधी पार्टी से न चाहते हुए भी समझौता करना पड़े ऐसी विधायकी में भला कैसे आनंद आएगा। जिस चुनाव को 70 हज़ार के वोटों के अंतराल से जीतने का दावा कर रहे थे वह चुनाव तमाम हथकंडों के बावजूद बड़ी मुश्किल से जीत पाए हो ,उस जीत में भला कैसे आनंद आएगा।
जीत का मजा धर्मपाल लाकड़ा को ही नहीं स्थानीय लोगों को भी नहीं आ रहा है। मुंडका विधान सभा के दोनों मुख्य मार्ग, रोहतक रोड और कराला-कंझावला रोड दोनों इतने बदहाल है कि लोग अपने ही इलाके में बंधक से बन गए है। जो भी राहगीर उस रोड से गुजरता है दिल्ली सरकार को कोसता है। इलाके में साफ़ सफाई ,पानी की किल्लत सहित कितने ही समस्याएं है लेकिन उनकी सुनने वाला कौन है? विधायक साहब कहतें है सुनील से बात करो। परेशान लोग सुनील लाकड़ा को सुनाने जाते है तो दो बातें सुनकर ही आतें है। अब उनके आस पास वही नेता होते है जो आगामी निगम चुनाव की टिकट की मंशा से मिल मिलाप कर रहे है।
मुंडका और स्थानीय लोगों की शिकायतों पर विधायक प्रतिनिधि सुनील लकड़ा से इन सब विषयों पर दिल्ली दर्पण ने भी बात करने की कोशिश की लेकिन बार बार फ़ोन किये जाने पर भी वे फ़ोन पर उपलब्ध नहीं हो सके।