संजय बर्मन
आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कल संवाददाता सम्मेलन में भाजपा शासित नगर निगम पर गंभीर आरोप लगाए। जिसमें उन्होंने हाल ही पास किए गए प्रस्ताव के अनुसार भाजपा पर नगर निगम की करोड़ों की संपत्ति को अपने प्रियजनों व जानकारों को मुफ्त में बांटने का आरोप लगाया है। आप का सीधा आरोप है कि आगामी दिल्ली नगर निगम चुनावों से पहले भाजपा डर चुकी है, तभी वह ऐसी गंदी राजनीति करने पर उतर आई है।
करोड़ों की संपत्ति मुफ्त में देने का प्रस्ताव
सौरभ भारद्वाज के अनुसार एक सितंबर को भाजपा शासित नगर निगम द्वारा यह प्रस्ताव लाया गया। जिसमें साफ – साफ यह जिक्र किया गया है कि नगर निगम के अंतर्गत आने वाली जितने भी संपत्ति है, जिनमें डिस्पेंसरी, अस्पताल, चेस्ट अस्पताल, मेटरनीटि अस्पताल या कोई खाली पड़ी जमीन हो। उसे नगर निगम मुफ्त में गैर सरकारी संगठनों को देने का लिए तैयार है। सौरभ का कहना है कि आगामी निगम चुनावों से पहले भाजपा यह गंदा खेल, खेल रही है। जिसमें वह निगम की करोंड़ों की संपत्ति को एनजीओं के नाम पर अपने चाहने वालों को, जानकारों को मुफ्त में देने जा रही है। इसके साथ ही प्रस्ताव में यह भी बताया गया है कि एनजीओं इन बिल्डिंगों या जमीनों का प्रयोग क्लीनिक, अस्पताल या मैटरनीटि अस्पताल आदि के रूप में कर सकती है। जिसके बदलें वह लोगों से शुल्क भी ले सकती है।
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निगम में हार से पहले सब चीजें बेचना चाहती हैं भाजपा
सौरभ भारद्वाज ने बताया कि हमनें पहले भी भाजपा द्वारा निगम की संपत्ति को बेचने के बारे में बताया है। जिसमें वह सिनेमा की 150 करोंड की संपत्ति को 34 करोड़ में बेचने की तैयारी कर रही है। फिर वह दंगल के मैदान को भी उसके कीमत का एक चौथाई कीमत पर बेचने जा रही है। पार्क में दुकाने खोलने जा रही है। सड़कों को फुड वेंडस के हवाले करने जा रही है। उन्होंने आगे बताया कि भाजपा जहां निगम के राजस्व के नाम पर हर समय रोना लेकर बैठी रहती है, कि हमारे पास राजस्व कम है। तो हम हर तरफ से राजस्व इकट्ठा करने की कोशिश करते रहेंगे। लेकिन भाजपा तो सभी संपत्ति को बेचने पर तुली हुई है। वह भी मुफ्त में। ऐसे में वह सिर्फ और सिर्फ अपना हित लेकर चल रही है।
स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लोग कहां जाए
भाजपा शासित नगर निगम द्वारा स्टेंडिंग कमेटी में यह प्रस्ताव कर देने के बाद अब यह तो साफ है कि भाजपा अपने संपत्ति को एनजीओस के हाथों सौंपने जा रही है, लेकिन ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि वह एनजीओस क्या सरकारी तौर तरीकों से ही स्वास्थ्य सेवाएं लोगों को निशुल्क देगी या फिर उन्हें अपने क्षेत्रों में पहले जैसी स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने के लिए शुल्क भी देना पड़ेगा।
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