Friday, December 27, 2024
spot_img
Homeअन्यतीर्थाटन और पर्यटन अलग-अलग होने चाहिए-महामंडलेश्वर यतींद्रानंद गिरी

तीर्थाटन और पर्यटन अलग-अलग होने चाहिए-महामंडलेश्वर यतींद्रानंद गिरी

ब्यूरो रिपोर्ट

नई दिल्ली। अब तीर्थों में पापों का बोझ बढ रहा है। तीर्थों में आकर पाप धुल जाते हैं लेकिन जो पाप होते हैं उसे कोई साबुन नहीं धो सकता। तीर्थाटन और पर्यटन अलग-अलग होने चाहिए और पुजारियों का संरक्षण होना चाहिए। पंडे-पुजारी 500 रूपए मांग लें तो आफत खड़ी हो जाती है लेकिन रेस्टोरेंट में पांच हजार भी लग जाए तो कोई बात नहीं। तीर्थ का अपना एक महत्व होता है। तीर्थ की मर्यादा बनी रहनी चाहिए, उसकी पवित्रता बनी रहनी चाहिए। मंदिर शक्ति का केंद्र बन गए हैं। सनातन का डंका पूरी दुनिया में बजेगा।


ये बातें धर्मयात्रा महासंघ द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में भारत की एकात्मता में धार्मिक यात्राओं का महत्व विषय पर आयोजित परिचर्चा में बोलते हुए महामंडलेश्वर यतींद्रानंद गिरी ने कही।
उन्होंने तीर्थ स्थलों में फैल रही बुराइयों को बेबाकी से बताया और कहा इस देश में धर्मयात्रा हाउस तो नहीं बने, हज हाउस बन रहे हैं। लोग तीर्थ यात्राओं पर मनोरंजन के लिए जाते हैं। अब तीर्थों पर पापों का बोझ बढ रहा है।

ये भी पढ़ेंउफ! यह महंगाई: टमाटर के बाद अब प्याज के दाम बढ़े


केंद्रीय संस्कृति मंत्री अर्जुन मेघवाल ने कहा कि अमृत महोत्सव का यह वक्त चिंतन, मनन और मंथन का विषय है। प्राचीन काल में संतों ने तीर्थयात्राएं की और भारत को विश्वगुरु बनाया। मुगलकाल और उसके बाद यात्राओं में कमी आयी तो हिन्दू मान्यताओं के लिए मुश्किल खड़ी हो गयी।
उन्होंने कहा कि मनुष्य में सभी गुण होते हैं और रहेंगे। सात्विक गुण आते हैं तो वह अच्छे निर्णय लेता है। उन्होंने धार्मिक यात्रा के महत्त्व के साथ-साथ तीर्थस्थानों पर तामसी प्रवृति पर भी चिंता जाहिर की।
परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि तीर्थयात्राएं हमारी श्रद्धाओं को जोड़ती है। धर्मयात्रा महासंघ ने इसे मिशन बनाया है। तीर्थयात्रा राष्ट्रभक्ति से भी जुड़ गई है और धर्म से भी। उन्होंने तीर्थस्थानों पर तामसी प्रवृतियों पर चिंता व्यक्त की।


वक्ताओं ने परिचर्चा में ऐसे कई गंभीर विषयों को भी उठाया गया जिस पर जागरूकता और जनांदोलन की जरूरत है।
सभी ने देश में तीर्थ स्थान के विकास और यात्रा व तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए काम कर रहे धर्मयात्रा महासंघ की तारीफ़ की और साथ ही इस बात पर भी जोर दिया देश में तीर्थ स्थानों के विकास और तीर्थ यात्राओं को बढ़ावा देने के साथ साथ जरूरत इस बात की भी है कि तीर्थ स्थानों और तीर्थयात्राओं की मर्यादा भी बनी रहनी चाहिए।
करीब दो घंटे चली परिचर्चा में धर्मयात्रा महासंघ से जुड़े प्रमुख राष्ट्रीय पदाधिकारी, सुनील शर्मा, हितेंद्र सिंघल, प्रदीप गुप्ता, ओमप्रकाश गुप्ता, दिल्ली प्रांत पदाधिकारी अध्यक्ष ओमप्रकाश गोयनका, महामंत्री ओमप्रकाश सर्राफ, संजीव शर्मा और कोषाध्यक्ष पवन गोयल सहित बड़ी संख्या में गणमान्य लोग उपस्थित थे।

ये भी पढ़ेंक्या है शरद पूर्णिमा का महत्व


धर्मयात्रा महासंघ के कार्यकारी अध्यक्ष प्रमोद अग्रवाल की अध्यक्षता और विजय कांत मिश्रा के संयोजन में हुई इस परिचर्चा में प्रमुख समाज सेवी नन्द किशोर अग्रवाल स्वागत अध्यक्ष के रूप में शामिल थे। धार्मिक यात्राओं के महत्त्व पर चर्चा के दौरान धर्मयात्रा महासंघ ने इस बात पर भी जोर दिया कि देश में अब तीर्थयात्राओं की परम्परा को बढ़ावा देना होगा। भारत की आत्मा तीर्थों में वास करती है और तीर्थों का विकास ही भारत का विकास है।

देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा यूटयूब चैनल दिल्ली दपर्ण टीवी (DELHI DARPAN TV) सब्सक्राइब करें।

आप हमें FACEBOOK,TWITTER और INSTAGRAM पर भी फॉलो पर सकते हैं।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments