Friday, April 26, 2024
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पांच राज्यों के चुनावों में सुप्रीम कोर्ट का कितना पालन होगा?

राजेंद्र स्वामी , दिल्ली दर्पण दिल्ली


देश के पांच राज्यों उत्तर प्रदेश ,पंजाब ,उत्तराखंड , गोवा और मणिपुर में चुनावी घमाशान मचा हुआ है। इन राज्यों में आगामी 10 फरवरी से साथ चरणों में चुनाव होंगे। कोरोना की चुनौतियाँ ,ओमीक्रोमे के खतरे के साथ साथ अब एक बड़ी चिंता राजनैतिक पार्टियों को भी हो सकती है। वजह राजनीती में अपराधीकरण विषय पर सुप्रीम कोर्ट सख्त निर्देश दिया है। राजनैतिक दलों को साफ़ -साफ़ कहा है कि वे यदि किसी अपराधी को टिकट दे रहे है तो उन्हें इसका कारण बनाता होगा की वे दागी को टिकट क्यों दे रहे है। क्या उन्हें विधान सभा उम्मीद के लिए कोई और योग्य उम्मीदवार नहीं मिला ? वरिष्ठ अधिवक्ता और बीजेपी नेता अश्वनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर अभी हाल ही में दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा कि राजनैतक दलों को अपनी वेबसाइट पर इसकी जानकारी साफ़ साफ़ प्रकाशित करनी होगी। जिसमें लिखा होना चाहिए “आपराधिक पृष्ठभूमि वाली उम्मीदवार ” सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी निर्देश दिए है कि वह के मोबाइल अप्लीकेशन बनाये जिसमें आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों की जानकारी शामिल हो। 

इस आदेश के बावजूद भी राजनैतिक दल इस गभीर विषय पर गंभीर नजर नहीं आ रहे है। किसी को भी किसी उम्मीदवार की छवि की चिंता नहीं है। उम्मीदवारों के चयन करने का उनका ही पैमाना है और वह् है जीत। इन्हे केवल जिताऊ उम्मीदवार ही चाहिए। राजनैतिक दलों की इस उदासीनता पर भी कोर्ट चिंतित है।अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार किया है। जिसमें मांग की गयी है की जो भी पार्टी किसी अपराधी को टिकट दे तो उसकी मान्यता रद्द की जाये। सुप्रीम कोर्ट जल्द ही इस पर सुनवाई करेगा। राजनैतिक दलों के लिए यह एक चिंता ही नहीं बड़ी चुनौती है। जनहित याचिका दायर करने वाले वकील अश्वनी उपाध्याय ने कहा की विधान सभा और लोक सभा लोकतंत्र का मंदिर है। मंदिरों आपराधिक लोग नहीं होने चाहिए। बकौल अश्वनी उपाध्याय ” यदि कोई पार्टी किसी अपराधी को टिकट देती है तो उसके पास ठोस कारण होना चाहिए की वह उसे टिकट क्यों दे रही है। पार्टी की वेब साइट और प्रचार माध्यमों के द्वारा ऐसे व्यक्तियों के बारें में लोगों को जागरूक करना होगा। पेपर और न्यूज़ चैनल द्वारा इसकी जानकारी देनी होगी।

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यदि ऐसा नहीं हुआ तो उसकी मान्यता रद्द की जा सकती है। अब बड़ा सवाल है की सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रुख के बाद क्या राजनितिक दलों पर कोई दबाब बनेगा की वे आपराधिक लोगो को टिकट देने से बचें ? लम्बे समय से सुप्रीम कोर्ट , चुनाव सुधार की दिशा में काम कर रही सस्थाएं और सरकारी संस्थाएं इस पर चिंता जाहिर करती रही है। सिद्धांतः यह मानती रही है कि राजनीती में अपराधी नहीं होनी चाहिए। लेकिन उनकी  कथनी और करने में हमेशा फर्क रहा है।

इस विषय पर जितनी चिंता व्यक्ति की जाती रहे है राजनीती में अपरधियों की संख्या उतनी ही तेज़ी से बढ़ रही है। वर्ष 2004 में लोक सभा चुनाव में दागियों की संख्या 24 प्रतिशत थी। वर्ष 2019 में यह 43 प्रतिशत तक पहुंच गयी। यानी 15 साल में करीब करीब दोगुना बाद गयी। वह दिन दूर नहीं जब यह संख्या 50 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। यदि ऐसा ही चलता रहा है राजनीती में अपराधियों का भी बोल बाला होगा। कहने की जरूरत नहीं की लोकतंत्र के लिए ,देश के भविष्य के लिए यह स्थिति कितनी खतरनाक होती जा रही है। चुनाव आयोग ने भी कहा कि वह लगातार कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहा है लेकिन फिर भी अपराधीकरण रुक नहीं रहा है। चुनाव आयोग की बेबसी और राजनैतिक पार्टियों की मनमानी पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित नजर आया। राजनैतिक दल यह मानते  तो है की राजनीती में अपराधियों का प्रवेश नहीं होना चाहिए। लेकिन इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाते नजर नहीं आती। कोई जिम्मेदारी और जबाबदेही लेती नजर नहीं आ रही है। उनके लिए प्रत्याशियों की छवि से ज्यादा जरूरी जीत है। अश्वनी उपाध्याय भारतीय मतदाता संघठन के अध्यक्ष भी रहे है। भारतीय मतदाता संघठन इस दिशा में सात सालों से जन जागरण अभियान चला रहा है। भारतीय मतदाता संघठन का मानना है की इस समस्या का समाधान मतदाताओं की जागरूकता ही है।

मतदाता संघठन के संस्थापक श्री रिखब चंद जैन इस विषय को लेकर बेहद संवेदनशील है और लगातार सक्रिय है। उनके प्रयाश के परिणाम भी सामने आ रहे है। लेकिन देशभर में बड़े  स्तर पर जनजागरण की जरूरत है। यह तभी संभव है जब सभी लोग अपने अपने स्तर पर इस मुहीम में भागीदारी निभाएं। अब देश में पांच राज्यों के चुनाव है , देखने वाली बात होगी की राजनैतिक पार्टियां सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश की कितनी परवाह अब करने जा रही है। ऐसा नहीं करने पर राजनैतिक दलों की मान्यता क्यों न रद्द कर दी जाये , इस विषय पर भी सुनवाई शुरू होने वाली है। जाहिर है यदि सुनवाई के बाद सुप्रीम फैसला भी ऐसा आता है तो यह भारतीय राजनीती में बड़ा बदलाव होगा। लोकतंत्र को मजबूत करने वाला कदम होगा।

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