Thursday, May 2, 2024
spot_img
Homeअपराधपियोगे तो मरोगे?

पियोगे तो मरोगे?

विशेष त्रिवेदी

सुशासन में एक बात की गारंटी है। पियोगे तो मरोगे ही। आखिर कब तक तुम अपमान का घूंट पीकर जिंदा रह सकते हो? बीडीओ -सीओ के आफिस से जिला मुख्यालय तक, थाने से एसपी आफिस तक लुटकर, डांट व हिकारत भरी बातें सुनकर भी कोई आदमी की जिंदगी जीने की जुर्रत करे तो मुझे उस पर दया कैसे आएगी? दस हजार चढ़ावा देकर भी इंदिरा आवास की अगली किश्त नहीं मिल रही तो घर आबाद होने की तुम्हारी थेथरई की परवाह किसे है? अब यह तुम पर निर्भर करता है कि जिल्लत की जिंदगी जीयोगे या भवसागर पार उतरोगे। मेरी मानो तो गम भुलाने को सुशासन च्वाइस शराब पियो और चुपचाप निकल लो। पार उतरने की गारंटी है! और इसी के साथ महाजन के कर्ज से हमेशा की मुक्ति। अब बहू बेटे जमीन बेचकर चुकाएंगे!


सरकार गलत नहीं है। भले ही शराबबंदी कानून बनाकर कागज पर उसे लागू भी कर चुकी है, लेकिन धरातल पर गांव- शहर में, गली- मोहल्ले में, पीने- पिलाने की पूरी छूट है। कोई यह नहीं कह सकता कि मिल नहीं रही! पंजाब हरियाणा से बिहार तक शराब का दरिया नहीं, सागर बह रहा है! आज यह गंगाजल से भी पवित्र है। जिसने डुबकी लगा ली, उसका बेड़ा पार! शहर में मकान, ब्लाक पर दुकान, दरवाजे पर बड़ी गाड़ी और थानेदार से पक्की यारी! इसी सागर में राजनेता, आईपीएस, आईएएस और अंडरवर्ल्ड वाले दामाद डुबकी लगा रहे हैं। शादियां नेता जी के बंगले में हों या वर्दी वाले साहब के गांव में, मंडप से स्टेज तक की वीडियोग्राफी में ये दामाद चहलकदमी करते दिख जाएंगे। साहबों के मोबाइल खंगालिए, दामादों के नंबर भरे पड़े हैं। यह एक ऐसी सिंचाई परियोजना है, जिसकी शाखा नहरें हर पुलिस थाने से गुजरते हुए गांव- गांव में पहुंच रही हैं। साधु की गाड़ी में, बस की सवारी में, एम्बुलेंस में, नदी में, तालाब में…. शराब के कार्टन ढोए-छिपाए जा रहे हैं। चारों ओर हरियाली है। थानेदार, माफिया और गांव के निठल्ले मिलकर फसल काट रहे हैं। इसे कहते हैं सबका साथ, सबका विकास।

सचमुच बिहार में बहार है। इसके खिलाफ अगर कोई मुंह खोलेगा तो पाप का भागी होगा। भय, भूख व भ्रष्टाचार से लड़ने वाले जब तक कुर्सी पर थे, उनके मुंह में भी लकवा मारे रहा। कुर्सी से उतरे तो ये पापी बोलने लगे हैं। कुर्सी पर रहते अगर उछल कूद करते, नारेबाजी करते तो गिर जाते। जब इन्हें गिरा दिया गया तो गुर्रा रहे हैं। कोई यह इल्जाम नहीं लगा सकता कि सरकार पीने नहीं दे रही या पीकर मरने नहीं दे रही है। हम पक्ष -विपक्ष को चुल्लू भर पानी में डूब मरने की सलाह देकर पाप के भागी नहीं बन सकते। वोटरों को नसीहत देता हूं, एक चुल्लू शराब पी कर निकल लें। साहब ने भी यही कहा है – पियोगे तो मरोगे ही! मैं भी कहता हूं, बोए हो तो काटो! गम की दुनिया से जी भर जाए तो जहर मत पियो, सुशासन च्वाइस पी लो।

सरकार समाजवादी है, जाहिर है कि गरीबों की है। सरकार की प्राथमिकता सूची में गरीब हैं। शराब तो एक बहाना है, गरीबों को ऊपर उठाना है। मुजफ्फरपुर से समस्तीपुर तक और गोपालगंज से छपरा तक सबसे पहले गरीब ही ऊपर उठाए जा रहे हैं। पीने वाले को शराब 12 से 24 घंटे के अंदर उठा ले रही है। भवसागर पार करा रही है। हमारे मुजफ्फरपुर में इसे रंथी एक्सप्रेस के नाम से जानते हैं। रोजाना हर जिला से दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, मुम्बई और गुजरात के लिए दर्जनों ट्रेनें खुल रही हैं। हाल फिलहाल में कोई चुनाव भी नहीं है। जो परदेश गए हैं, उन्हें जाति का वास्ता देकर अगले चुनाव के मतदान में बुलाया जाएगा। जो कंबख्त कहीं पसीना बहाने परदेश नहीं जा रहे हैं, वे यहीं रहकर भवसागर पार कर रहे हैं। ये क्या समझते हैं कि सामाजिक न्याय के वोटर नहीं बचेंगे? अगली पीढ़ी आ जाएगी, 32 साल में दो पीढ़ियां गुजर गईं। किसी के चले जाने से राजपाट नहीं चला जाता। कल फिर अलग- अलग जातियों के नए वोटरों की कतार लगेगी।

विरोध करने वाले शराब के धंधे में लाखों- करोड़ों की कमाई से जलते हैं। कभी किसी ने सोचा कि एक शराब के न रहने से कितनी तरह की दुश्वारियां पैदा हो सकती हैं? जब तक दो चार पैग हलक के नीचे न जाए, दुकान -मकान पर चढ़ कर गोली चलाने की हिम्मत कहां से आएगी? हम राह चलती लड़कियों को देख कर सिटी भले बजा लें, उनसे जबरदस्ती, अपहरण, गोली चलाने और एसिड अटैक की जुर्रत कैसे करेंगे? उसके 35 टुकड़े करने का जिगर कहां से लाएंगे? हत्या, लूट, बलात्कार और गैंगवार के धंधे कैसे चलेंगे? अद्धा पौआ डकारे बगैर तो फोन पर धमकी देने लायक आवाज तक नहीं निकलती! फिर तो पुलिस थाने भी वीरान हो जाएंगे। बेचारे पुलिस वालों के बच्चे क्या खाएंगे पीएंगे? उन लड़की वालों की भी पूंजी डूब जाएगी, जिन्होंने बड़े अरमान से दारोगा दामाद लाया था!
सुशासन बाबू और उनके साहबों ने बहुत सोच समझकर शराब की गंगा बहाने की रणनीति बनाई। यह सब रातों रात नहीं किया। पहले गली- गली में शराब की दुकानें खोलकर लाखों को तलबगार बनाया। उसके बाद शराबबंदी का बोर्ड टांगकर पिछले दरवाजे खोले। मांग और आपूर्ति के नियम से ही तो बिहार में शराब का धंधा शिखर पर पहुंचा है। मुझे उस वक्त बड़ी दया आती है, जब बारात से लौट रहे युवक रास्ते में कातर स्वर में पुलिस से कहते हैं – अंकल थोड़ी सी जो पी ली है, चोरी तो नहीं की है! आज तो अधिकांश बारात बेरौनक हैं। कोठों पर ठीक से ठुमका नहीं लग पा रहा। कम से कम बारात और कोठे पर दारू की छूट दी जानी चाहिए। आगे सुशासन बाबू की मर्जी!

छपरा से भवसागर की ओर निकले लोगों की मंशा ठीक नहीं थी। सुशासन में धब्बा लगाने के लिए पी रहे थे। विरोधी दल वालों ने गंदा काम किया। जानबूझकर पिलाया। जो यह सोचकर पीते हैं कि सरकार बदनाम हो जाएगी, सरकार गिर जाएगी, सरकार को शर्म आएगी….. वे लोग भ्रम में हैं! पीने वाले गिरेंगे, सरकार नहीं! फेवीकोल से चिपके साहब तो कभी गिर नहीं सकते। ऐसे बात- बात पर सरकार शर्माने लगी तो राजपाट कैसे चलेगा? स्थाई सरकार जरूरी है। सरकार को ढीठ और निर्लज्ज बनना पड़ता है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments