Sunday, December 29, 2024
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Homeअन्यमजदूर बिकता है !

मजदूर बिकता है !

हर गली हर चौराहा खुद से पूछता है,

क्यातुम्हारेमुल्कमेंभी

कोई मजदूर बिकता है

तुम्हारे मुल्क में रोटी इतनी सस्ती क्यों,

कि थाली का जूठन   

हमारे पेट का निवाला बनता है 

साहब और मजदूर का भी 

ये कैसा अटूट रिश्ता है,

कि महलों के बीच हमारा बच्चा भूखा मरता है

हर गली हर चौराहा खुद से पूछता है,

क्या तुम्हारे मुल्क में भी

        कोई मजदूर बिकता है…….

 तुम्हारे घर का कांच टूटे तो,

आवाज संसद तक उठती है,

हमारी मौत पर एक आह तक नहीं निकलती

 ये श्रम का भी क्या अजीब धंधा है, 

यहाँ इंसान ही इंसान के हाथो बिकता है

हर गली हर चौराहा खुद से पूछता है,

क्या तुम्हारे मुल्क में भी

        कोई मजदूर बिकता है……. 

   तुम्हारे घर का हर कोना परदे मे रहता है और 

हमारे जिस्म का सौदा खुलेआम होता है

हर गली हर चौराहा खुद से पूछता है

क्या तुम्हारे मुल्क में भी

कोई मजदूर बिकता है

                     कोई मजदूर बिकता है ……………

केएम भाई 

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