Friday, November 8, 2024
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पहलवानों के आंदोलन में संयुक्त किसान मोर्चा की भूल

रामअवध सिंह 

संयुक्त किसान मोर्चा ने पहलवानों का साथ देने का वचन दिया था। घटक संगठन अपने-अपने ढंग से पहलवानों के पक्ष में आवाज उठाने लगे। मैंने भी पहलवानों के पक्ष में कई दिन संदेश व्हाट्सएप और फेसबुक के माध्यम से दिया।

फिर एक दिन एकांत में सोचने लगा की संयुक्त किसान मोर्चा को किसान संगठन को इसमें भागीदारी करना ठीक नहीं है। फिर कई लोगों से मैंने फोन पर अपनी बात को रखा तब लोगों ने कहा कि किसान की बेटियां हैं इनके साथ संयुक्त मोर्चा को रहना चाहिए लड़ना चाहिए।
आप सोच रहे हैं। आपका दिमाग ठीक नहीं चल रहा है। मेरा यह कहना था की किसान के बेटे और बेटियां बहुत जगह है खेलकूद में प्रशासन में राजनीति में हर क्षेत्र में किसान के बेटे और बेटियां हैं। यौन दुराचार या बलात्कार या कोई और दूसरा शोषण हो सकता है।
ऐसे में किसान के बेटा बेटी होने का हवाला देकर संयुक्त मोर्चा विभिन्न वर्गों के आंदोलन का पुच्छला बनता जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा कृषि सवालों पर फोकस करें तब तो ठीक है वरना गैर किसान आंदोलन के पीछे पीछे दौड़ना अपनी ऊर्जा और ताकत को बर्बाद करना है। मेरी यह बात किसी को पसंद नहीं आई। मैं भी बहुमत के आगे लाचार हूं, मेरा विचार अल्पमत है। फिर पता चला कि समझौता हो गया। संयुक्त मोर्चा के नेता राकेश टिकैत और नरेश टिकैत ने समझौता करा दिया।

फिर पहलवान लोग अपनी सर्विस पर ड्यूटी पर जाने लगे नाबालिक लड़की के पिता ने बयान बदल दिया। पहलवान बेटियां जो गरज रही थी सर्विस में ट्रेनिंग में जाने लगी। जिन्हें नौकरी की लालच है दौलत और शोहरत की लालच है वह क्या सरकार के खिलाफ आर पार की लड़ाई में जा सकते हैं।

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