हर राज्य में एक दूसरे से टकराव विपक्ष के दलों में बिना त्याग बलिदान के केंद्र की सत्ता चाहते हैं सभी दल
केजरीवाल भगवंत मान के साथ आज छत्तीसगढ़ के रायपुर में तो कल मध्य प्रदेश के रीवा में करने जा रहे रैली
चरण सिंह राजपूत
नई दिल्ली। देश में कुछ पत्रकार और कुछ लोग हैं कि विपक्ष से कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगा लेते हैं। ये लोग यह समझने को तैयार नहीं कि इन लोगों को भी सत्ता के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा है। देश और समाज की भलाई तो बस पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए है। हर प्रदेश में इन सभी के एक दूसरे से टकराव हैं। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव कांग्रेस को सीटें देने को तैयार नहीं तो पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी और दिल्ली में तो कांग्रेस से खटपट होने के बाद अरविन्द केजरीवाल ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गठबंधन से अलग होकर ही चुनाव लड़ने का मन बना लिया है।
यह अपने आप में दिलचस्प है कि लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष ने मोदी सरकार को घेरने के लिए इंडिया गठबंधन तो बना लिया पर इन दलों के स्वार्थ खत्म नहीं हुए हैं। सभी दल सत्ता तो चाहते हैं। मोदी सरकार को उखाड़ फेंकना तो चाहते हैं पर त्याग बलिदान करने को कोई दल तैयार नहीं। सभी दलों के नेता प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। सभी दल सभी प्रदेशों में लड़ना चाहते हैं। सभी दल मिलकर सत्ता का मजा तो लूटना चाहते हैं पर मिलकर संघर्ष करने को तैयार नहीं। मीटिंग तो कर रहे हैं पर मिलकर कोई रैली करने को तैयार नहीं। कोई पार्टी जन समस्याओं को लेकर आंदोलन करने को तैयार नहीं। लाठी डंडा खाने को तैयार नहीं। पटना के बाद बेंगलुरु में दूसरी मीटिंग भी हो गई।
26 दल साथ भी आ गए। क्या संदेश दिया विपक्ष ने ? 31 अगस्त और 1 सितम्बर को मुंबई में मीटिंग है और मुख्य आयोजक शरद पवार अपने उस भतीजे से मिल रहे हैं जो उनको बीच मझधार में छोड़कर चला गया और दिल्ली में कांग्रेस और आप में घमासान मचा हुआ है।इंडिया मोदी सरकार से फाइट तो क्या करेगा बात तक 2024 के चुनाव की रणनीति भी नहीं बना पाया है। विपक्ष के दलों की आपसी खींचतान है कि खत्म होने का ही नाम नहीं ले रही है। दिल्ली में कांग्रेस नेता केजरीवाल सरकार के खिलाफ कुछ बोल क्या गए कि केजरीवाल ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में अकेले लड़ने की रणनीति बना ली।
20 अगस्त को मध्य प्रदेश के रीवा में केजरीवाल की रैली है तो आज यानि कि 19 अगस्त को अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान आज यानी कि 19 अगस्त को छत्तीसगढ़ पहुंच रहे हैं और दोनों का रायपुर में कार्यक्रम हैं।जहां वे पार्टी कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देंगे। रैली में विधानसभा चुनावों को लेकर छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए गारंटी कार्ड भी दिया जाना है। कार्यक्रम में प्रदेश भर के ‘आप’ पदाधिकारी और कार्यकर्ता जुटेंगे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब विपक्ष लोकसभा चुनाव में मिलकर चुनाव लड़ने की रणनीति बना रहा है तो फिर राज्यों में अलग अलग चुनाव क्यों ? वैसे भी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है।
एक दिन बाद 20 अगस्त को दोनों नेताओं का मध्य प्रदेश के रीवा में भी कार्यक्रम है। रीवा में केजरीवाल और भगवंत मान रैली को संबोधित करने के साथ ही आम आदमी पार्टी की गारंटी की घोषणा कर सकते हैं। ‘आप’ के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव पंकज सिंह ने गत बुधवार को बताया था कि पार्टी मध्य प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
दरअसल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है और मध्य प्रदेश में भी पार्टी मजबूत स्थिति में है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और सरकार भी बनाई थी. हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में हुई बगावत के बाद कांग्रेस को सरकार गंवानी पड़ी थी. इस बार पार्टी सत्ता में वापसी कर बीजेपी से हिसाब बराबर करने के मूड में है।
जहां गई ‘आप’, कांग्रेस को हुआ नुकसान
सिर्फ विधानसभा चुनाव ही नहीं लोकसभा के हिसाब से भी दोनों राज्य अहम हैं। दोनों राज्यों में कुल मिलाकर लोकसभा की 40 सीटें आती हैं। अब आम आदमी पार्टी के इन दोनों राज्यों में उतरने के बाद कांग्रेस का बेचैन होना स्वाभाविक है। कांग्रेस की ये चिंता यूं ही नहीं है। आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। अभी तक आम आदमी पार्टी जहां भी बढ़ी है, वहां कांग्रेस को ही नुकसान हुआ है।
आम आदमी ने चुनावी राजनीति में पहली सफलता दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार को हटाकर ही चखी थी. इसके बाद ‘आप’ ने पंजाब से कांग्रेस का पत्ता साफ किया. यही नहीं, बीते साल गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के उतरने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ था और पार्टी का प्रदर्शन बेहद ही खराब रहा था.
दिल्ली को लेकर आमने-सामने
हाल ही में दिल्ली को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी आमने-सामने आ गए थे, जब कांग्रेस की शीर्ष स्तरीय बैठक के बाद पार्टी नेता अलका लांबा ने बयान दिया कि पार्टी दिल्ली की सभी 7 लोकसभा सीटों पर तैयारी करेगी. इस बयान से ‘आप’ इतना नाराज हुई थी कि उसने तो यहां तक कह दिया कि अगर ऐसा है तो मुंबई में होने वाली बैठक में जाने का कोई औचित्य नहीं है. बाद में कांग्रेस को सफाई देनी पड़ी कि अलका लांबा दिल्ली पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं हैं और अभी दिल्ली की सीटों को लेकर फैसला नहीं हुआ है.
दिल्ली सर्विस बिल पर ‘आप’ ने बनाया था दबाव
इससे पहले दिल्ली सर्विस बिल पर समर्थन देने के लिए आप ने कांग्रेस पर दबाव की राजनीति की थी और उसे सफलता भी मिली थी. बेंगलुरु में होने वाली विपक्षी दलों की बैठक के पहले आम आदमी पार्टी ने अल्टीमेटम दे दिया था कि अगर दिल्ली बिल पर उसे समर्थन नहीं दिया जाता है तो उसके बैठक में जाने को मतलब नहीं है। हालांकि, बाद में कांग्रेस ने समर्थन की घोषणा की और आम आदमी पार्टी बैठक में शामिल हुई थी।
अभी भी दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित आम आदमी पार्टी पर लगातार हमले कर रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि आम आदमी पार्टी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। ऐसे में जब ‘आप’ कांग्रेस की मजबूत पकड़ वाले छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सीधे एंट्री कर रही है, तो कांग्रेस की प्रतिक्रिया देखना स्वाभाविक होगा. सवाल ये भी है कि क्या इंडिया गठबंधन के दल एक दूसरे के गढ़ों में सेंध लगाते हुए 2024 के लिए साथ बने रह सकते हैं।