रिपोर्टर कलेक्टिव ने किया पीएम मोदी और पूंजीपतियों के गठबंधन का खुलासा
पीएम मोदी के बहुत करीबी हैं एनआरआई शरद मराठे
नीति आयोग को पत्र लिखकर बनवाने थे ये कानून, कानून को बनाने को नीति आयोग ने बनाई थी अडानी, पतंजलि, महिंद्रा एंड महिंद्रा, बिग बास्केट और आईटीसी ग्रुप के प्रतिनिधियों की टॉस्क फ़ोर्स
किसान आंदोलन के दबाव में पीएम मोदी को गुरु नानक जयंती 2021 को वापस लेने पड़े थे ये कानून
चरण सिंह राजपूत
नई दिल्ली। गजब हैं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। पीएम मोदी को अपने देश के किसान तो मुर्ख लगते हैं पर एनआरआई उनकी नजरों में बहुत योग्य और भारत का हित चाहने वाले हैं। वह बात दूसरी है कि देश के किसान रात दिन मेहनत कर देश के लोगों का पेट भरते हैं और एनआरआई देश को धता बताकर विदेश में जाकर बस गए हैं और अपनी कमाई से वहां का राजस्व बढ़ा रहे हैं। देश के लोगों के लिए भले ही मोदी के पास समय न हो पर एनआरआई के साथ वह विदेश में मिलते-जुलते रहते हैं विभिन्न कार्यक्रमों में सेल्फी लेते देखे जा सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि पीएम मोदी को गुरु नानक जयंती पर 2021 में जो नए कृषि कानून वापस लेने पड़े उनको एक एनआरआई के सुझाव पर किसानों पर थोपा गया था। ये कानून किसानों की खेती पूंजीपतियों के हाथों में सौंपने का एक षड्यंत्र था।
दरअसल रिपोर्टर कलेक्टिव ने मोदी और पूंजीपतियों के इस षड्यंत्र का खुलासा किया है। रिपोर्टर कलेक्टिव की रिपोर्ट ने किसानों के विरोध को सही ठहराते हुए मोदी सरकार के किसानों को बेवकूफ बनाने और खेती को पूंजीपतियों के सुपुर्द करने की मंशा को उजागर किया है। दरअसल इन कानूनों के खिलाफ 13 महीने तक चले आंदोलन में किसानों को बीजेपी समर्थित संगठनों और लोगों ने नक्सली, माओवादी और देशद्रोही न जाने क्या क्या कहा था पर किसान केंद्र सरकार के हर हथकंडे को विफल कर रहे थे। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले हुए इस आंदोलन में किसानों को आम लोगों का बड़ा समर्थन मिला था।
उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में नुकसान होने की आशंका के चलते खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को गुरु नानक जयंती के दिन टेलीविजन पर बोलते हुए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी । प्रधानमंत्री ने बाकायदा देश से माफ़ी भी मांगी थी। तब उन्होंने कहा था कि उनकी तपस्या में कुछ कमी रह गई थी। वे लोग किसानों को समझा नहीं पाए। मतलब रिपोर्टर कलेक्टिव के इस खुलासे के बाद किसानों की आशंका प्रमणित भी हो रही है।
ऐसी में प्रश्न उठता है कि इन कानूनों का प्रस्ताव देने वाला आखिर यह एनआरआई कौन है ? पीएम मोदी को ये कानून लाने का सुझाव शरद मराठे एनआरआई ने दिया था। यह अपने में आप में दिलचस्प बात है कि यह सज्जन न तो कोई कृषि विशेषज्ञ हैं और न ही कोई अर्थशास्त्री। यह सज्जन केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय के स्पेशल टास्क फोर्स के अध्यक्ष बताये जा रहे हैं।
बताया जा रहा है कि रिपोर्टर कलेक्टिव ने इन कानूनों को बनाने से संबंधित जो दस्तावेज जुटाए हैं उनके बनाने में न तो किसी कृषि विशेषज्ञ का कोई सलाह मशविरा लिया गया, न किसी अर्थशास्त्री की राय मांगी गई न ही किसी किसान संगठन और न ही किसी सामाजिक संस्था से से कोई बातचीत की गई। खुद पीएमओ के 27 सदस्यीय सलाहकार समिति भी कहीं नहीं दिखाई दी। पीएमओ की सलाहकार समिति को इस प्रक्रिया से बाहर रखने का मतलब यह है कि कोई षड्यंत्र रचा गया था।
दरअसल कृषि कानून बनाने की सलाह देने वाले मराठे प्रधानमंत्री मोदी के विदेशी दौरों में इवेंट मैनेजर की भूमिका निभाते रहे हैं। समझ गए न ? यही सज्जन हैं जो विदेश में एनआरआई के कार्यक्रम कराते हैं। यही सज्जन हैं जो विदेशों में मोदी की सभाएं कराते हैं। मोदी की महिमामंडन करने और सच्ची झूठी राष्ट्रवाद का रूप देकर भारत में पहुंचाते हैं और गोदी मीडिया में मोदी की महिमामंडित कराते हैं। मतलब यह व्यक्ति मोदी की मार्केटिंग करते करते किसानों को बर्बाद करने चला था।
शरद मराठे पीएम का कितना करीबी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस सज्जन ने नीति आयोग को एक पत्र लिखकर कृषि नीति बनाने का सुझाव दिया था। उस पत्र में सुझाव दिया गया था कि कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेट की भूमिका और भागीदारी का विस्तार करने और एग्री बिजनेस को बढ़ावा दे का सुझाव भी इन साहब ने दिया था। यह प्रधानमंत्री के करीबी होने का ही असर था कि इस पत्र के बाद नीति आयोग इस काम में लग गया था। नीति आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष राजीव कुमार जो इस समय चुनाव आयुक्त हैं।
दिलचस्प बात यह है कि बनाये जा रहे थे कृषि कानून और राजीव कुमार ने ने जो 11 सदस्यीय हाई पावर टास्क फ़ोर्स का गठन किया था उसमें उद्योगपति थे। इस टॉस्क फ़ोर्स में अडानी ग्रुप, पतंजलि, महिंद्रा एंड महिंद्रा, बिग बास्केट और आईटीसी के प्रतिनिधि थे। इतना ही नहीं खुद शरद मराठे और अशोक दलवई को सदस्य बनाया गया था। मतलब इस टॉस्क फ़ोर्स में कोई अर्थशास्त्री, कृषि विशेषज्ञ और किसानों के प्रतिनिधि नहीं था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये तीन कानून किसानों के लिए लाये थे थे या फिर पूंजीपतियों के लिए ?
दरअसल पीएम मोदी के मित्र गौतम अडानी कई साल पहले से ही ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955’ को खत्म करने का दबाव बना रहा था। ये मोदी की तीन कृषि कानून लागू करने की रणनीति थी कि अडानी ग्रुप ने 2018 में साइलो बनाकर जमीन खरीदने शुरू कर दी थी।
दरअसल राजीव कुमार ने उस समय दो कमेटियां बनाई थी। इन कमेटियों में मल्टी मिनिस्ट्रियल टास्क फ़ोर्स भी थी। इस कमेटी ने जो सुझाव दिए थे उनके अनुसार कानून बनाते समय एमएसपी और फसल बीमा को कानूनों में जगह दी जाये। लेकिन पूंजीपतियों की स्पेशल टास्क फोर्स ने इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। मतलब उन तीन कानूनों पर पूंजीपतियों का पूरा प्रभाव था। दरअसल कारपोरेट घरानों ने पहले ही किसानों की भूमि को लीज पर लेने का समझौता कर लिया था। कई प्रदेशों में मंडी के बाहर खरीदारी भी शुरू कर दी थी।
मोदी किसानों के कितने हितैषी हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर उन्होंने कोविड-19 के चलते देश पर लॉकडाउन थोप दिया। मतलब लोगों को अपने घरों में कैद कर दिया। लोगों को शहरों से पलायन करना पड़ा। कितने लोगों ने घर जाने के चक्कर में दम तोड़ दिया और दूसरी ओर आपदा में अवसर ढूंढने में माहिर माने जाने वाले पीएम मोदी ने 5 श्रम संहिता और तीन कृषि कानूनों को आखरी शक्ल देने में अपनी टीम लगा दी। मतलब पूंजीपतियों का हित साधने के लिए किसान और मजदूर की बर्बादी की तैयारी। जब कोरोना महामारी का असर थोड़ा कम हुआ तो चार श्रमकोड और तीन कृषि कानून अध्यादेश ला दिया गया और मानसून सत्र में जबरदस्ती कृषि कानूनों को संसद में पास भी करा लिया गया। मतलब उद्योगपतियों द्वारा तैयार किये गए कृषि कानून किसानों थोप दिए गए।
दिलचस्प बात यह है कि देश के जिन अर्थशास्त्रियों, पत्रकारों, साहित्यकारों और लेखकों को इसका विरोध करना चाहिए था वे मोदी की चाटुकारिता में लग गए। किसान संगठनों ने इन कानूनों में अपनी बर्बादी समझ खुद ही आंदोलन किया और सरकार को आंदोलन के सामने झुकना पड़ा।
दरअसल कृषि उत्पादन और भंडारण पर लम्बे समय से पूंजीपतियों की निगाह है। इसी खेती को कब्जाने के लिए इन पूंजीपतियों ने पीएम मोदी पर दबाव बना रखा था। मोदी हैं कि पूंजीपतियों पर पूरे मेहरबान हैं।