Friday, November 8, 2024
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Politics : अम्बेडकर का संविधान खत्म कर मोदी का संविधान स्थापित करने का रचा जा रहा षड्यंत्र 

चरण सिंह राजपूत 

गांधी, लोहिया और जेपी के विचार को खत्म किया जा रहा है और इन महापुरुषों के नाम पर राजनीति करने वाले नेता चुप हैं। यहां तक कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में वाराणसी में गांधी जेपी की विरासत सर्व सेवा संघ को बुलडोजर चलाकर ध्वस्त कर दिया गया पर आज के स्थापित समाजवादियों पर इसका कोई असर नहीं। इन लोगों ने समाजवाद और सच्चे समाजवादियों के बारे में समाजवादी कार्यकर्ताओं को बताया ही नहीं। आज का युवा मुलायम और लालू तक को ही समाजवादी नेता समझते हैं। समजवादी का मतलब लोग सपा या फिर राजद से जुड़ना ही समझते हैं। समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव, कर्पूरी ठाकुर, आचार्य कपिल देव, चौधरी चरण सिंह, मधु लिमये, मधु दंडवते जैसे समाजवादियों के बारे में कार्यकर्ताओं को बताने की कोशिश ही नहीं की। यह सब इसलिए किया गया कि यदि कार्यकर्ताओं को समाजवाद और समाजवादियों के बारे में कार्यकर्ताओं को जानकारी हो जाती तो फिर  ये लोग उन्हें अपना गुलाम कैसे बना पाते। यह कार्यकर्ताओं को गुलाम बनाने और वंशवाद को बढ़ावा देने की ही प्रवृति रही कि आज विपक्ष कमजोर है और सत्ता में बैठे लोग अपनी मनमानी कर रहे हैं। 

बीजेपी ने समाजवाद और धर्मनिर्पेक्षता की मजाक ऐसे ही बनाना शुरू नहीं किया था। ऐसे ही पीएम मोदी समय समय धर्मनिपेक्षता की मजाक नहीं बनाते रहे हैं ? संविधान में ये दो शब्द ही हैं जो बीजेपी-आरएसएस के हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे में बाधक है। यह वजह है कि अब बीजेपी ने पीएम मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद् के चेयरमैन बिबेक देवरॉय से संविधान बदलने को लेकर एक लेख लिखवाया है। यह लेख संविधान को बदलने के लिए एक चर्चा शुरू कराने के लिए लिखवाया गया है। इस लेख को लेकर भी बिहार से जदयू और राजद ने ही दी है। देश में जितने भी दल समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को लेकर राजनीति कर रहे हैं। वे इस तरह के मामलों को लेकर चुप्पी साध जाते हैं। नहीं तो बीजेपी समाजवाद और धमनिर्पेक्षता का मजाक बना न पाती।

देश के सामने एक बड़ा प्रश्न है कि देश को आज़ाद कराने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले देशभक्त नेताओं से ज्यादा योग्य और देशभक्त मोदी भक्त हो गए हैं क्या ? जो लोग बाबा साहेब की अगुआई में बने संविधान की वजह से आज देश की सत्ता का मजा लूट रहे हैं उन लोगों की नजरों में यह संविधान खटकने लगा है। जी हां पीएम मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद् के चेयरमैन बिबेक देवरॉय के संविधान को लेकर लिखे एक लेख से तो यही लग रहा है। इस लेख में बिबेक देवरॉय ने संविधान को बदलने की पैरवी की है।

दरअसल बिबेक देबराय ने अपने लेख में  लिखा है कि 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा  के लिए गठित एक आयोग द्वारा एक रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। कानून में सुधार के कई पहलुओं की तरह यहां और दूसरे बदलाव से काम नहीं चलेगा।
इस लेख में यह भी कहा गया है कि हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए,  जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुई थी। 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है? कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्रॉइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए। यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में इन शब्दों का अब क्या मतलब है। समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देना होगा।

दरअसल यह देश के संविधान की ही ताकत है कि अपने को चाय बेचने वाले का बीटा बताने वाले नरेंद्र मोदी आज देश के प्रधानमंत्री हैं। यदि संविधान आज के चाटुकारों के दबाव में बना होता तो शायद गरीब आदमी चुनाव ही न लड़ पाता। आखिर संविधान बदलने से क्या होगा ? क्या बीजेपी संविधान से समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता शब्द हटाना चाहती है। 

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