– राजेंद्र स्वामी ,
पिछले दो दिन से मेरे कई साथी पत्रकारों के मेरे पास फ़ोन आये ,जिसमें मुझसे पूछा जा रहा था की आज तक क्या बंद होने वाला है ? मैंने हैरानी से पूछा आपको किसने कहा ? उसने कहा सूना था और पिछले दो दिन से मीडिया में खबरें भी है की TV Today Network की हालत खस्ता है, सोशल मीडिया और कुछ बड़े अखबारों में भी खबरें छपी है आज तक की हालत पतली है ?
में भी आज तक से एक दशक से जुड़ा रहा हूँ और वहां क्या चल रहा है की इसकी जानकारी भी है और अहसास और अनुभव भी है। आज तक से जुड़े मेरे जैसे कई पत्रकार यह तो यह मान रहे थे की अब “आज तक”पहले जैसा चॅनेल नहीं रहा। अब इसकी उलटी गिनती शुरू हो गयी है ,लेकिन इसकी हालत इतनी जल्दी इतनी नाजुक हो जायेगी ,यह जरूर चौंकाने वाला है। भला कौन यकीन कर सकता है कि 10 वर्षों से ज्यादा समय तक देश का नंबर -1 चैनल बना रहने वाला TRP में पांचवें नंबर पर पहुंच जाएगा ? कौन अनुमान लगा सकता था कि उसका मुनाफा 64 % तक घटकर 19.72 करोड़ से घटकर केवल 7. करोड़ कम हो जाएगा। इसके शेयर 214 से घटकर 192 तक लुढ़क जायेंगे ? लेकिन ऐसा हो गया है। चैनल की साख खत्म हो रही है टीआरपी तेज़ी से घटी है और विज्ञापन से होने वाली कमाई घट रही है।
इन खबरों से मुझे बहुत दुःख हुआ है। मैंने आज तक के लिए एक दशक से भी ज्यादा समय तक पत्रकार के रूप में काम किया है। मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में जो थोड़ी बहुत पहचान मिली उसमें आज तक का बहुत बड़ा योगदान है। मुझे गर्व होता था की में देश के नंबर -1 न्यूज़ चॅनेल से जुड़ा हूँ,जिसमें काम करना किसी भी उदयमान पत्रकार के लिए एक सपना है ,किसी भी पत्रकार और कर्मचारी के लिए यह सम्मान की बात थी वह आज तक में काम कर रहा है। अब वह बात नहीं रही , यहाँ के पत्रकारों में चिंता है की मैनेजमेंट इस चुनौती से कैसे निपटेगा ? किस किस की नौकरी जाने वाली है।
आज तक की इस हालत पर मुझे अफ़सोस भी है और दुःख भी है। लेकिन क्योकि में आज तक से जुड़ा रहा हूँ तो मुझे यह भी अहसास है की आज तक की ऐसी दयनीय हालत क्यों और कैसे हुयी ? मुझे जब आज तक से बतौर स्ट्रिंगर जुड़ा था तो मेरी किसी से सिफारिश नहीं की थी बल्कि आज तक के कुछ पत्रकार ही मुझे आज तक में लेकर गए। मुझे यह भी याद है की एक दशक पहले मुझे आज तक से करीब 50 से 60 हज़ार रुपये प्रतिमाह तक मिल जाते थे। दिल्ली आज तक में शायद हो कोई दिन होगा जब मेरी दो तीन खबर दिल्ली आज तक पर न चलती हो। सभी एरिया रिपोर्टर दिन रात भागदौड़ करते थे, Assingment पर बैठे लोग और बॉस खूब भागते थे ,सबकी खबरें चलती थी तो सबको अच्छा भी लगता था। यह वही दौर था जब आज तक एक दशक से भी ज्यादा समय तक देश का नंबर -1 चैनल बना हुआ था,हर लिहाज़ से टीआरपी में भी और मुनाफे में भी।
लेकिन पिछले 4-5 साल में परिस्ठियाँ बदली है। आज मेरी स्ट्रिंगर्स साथी जानते है की अब न उन्हें पैसा ज्यादा मिलता है और ना ही उनकी खबरें ही दिखाई देती है। अब स्ट्रिंगर्स का काम केवल सूचना देना भर रह गया है। दिल्ली आज तक के बंद होने के बाद तो जैसे खबर रह ही नहीं गयी है। कहने को तो दिल्ली तक शुरू किया है लेकिन चैनल को खोलकर देखेंगे तो लगता इसमें केवल आम आदमी पार्टी की ही खबरें चलती नजर आती है। नेशनल में मोदी – मोदी चलता है और दिल्ली स्टेट में आम आदमी पार्टी। कांग्रेस पार्टी तो जैसे बीते दिनों की बात हो गयी। आप इसके डिजिटल प्लेटफार्म को देख लीजिये यदि महीने में एक दो खबर भी नजर आ जाये तो बड़ी बात होगी। यही वजह है की जनता ने इसे देखना बंद कर दिया है और इसकी टीआरपी और इसकी साख तेज़ी से निचे गिर रही है। इसका असर चॅनेल को मिल रहे विज्ञापनों पर पड़ रहा है। इसका मुनाफा 64 % घट गया।
चैनल की इस हालत के लिए मैनेजमेंट ही जिम्मेदार है। मुझे याद है जब में आज तक से जुड़ा था तो वहां स्ट्रिंगर्स का भी सम्मान होता था। साल में दो तीन बड़ी मीटिंग होती थी और स्ट्रिंगर्स उस मीटिंग का महत्वपूर्ण हिस्सा होता था। अच्छे रिपोर्टर्स और पत्रकार का सम्मान होता था। लेकिन अब हालत यह है की इसकी सुरक्षा ऐसी है की संसद भवन की भी क्या होगी। यदि कोइ बड़ा अधिकारी और पत्रकार भी अपना आईकार्ड लाना भूल जाये तो उसके लिए अपने ही ऑफिस में प्रवेश करना भी किसी कोइ आसान काम नहीं है। स्ट्रिंगर्स की तो बात ही छोड़ दीजिये, दिल्ली आज तक और दिल्ली आज तक के सीनियर्स उनके साथ सड़क पर किसी चाय की दूकान पर बैठकर मीटिंग लिया करते थे। जब भी स्ट्रिंगर्स अपनी समस्या बताते थे तो उनके पास आश्वाशन देने के अलावा कोइ जबाब नहीं होता था। उनकी शिकायतें कम होने की बजाये बढ़ती चली गयी नतीजा ज्यादातर अच्छे रिपोर्टर्स और स्टिंगर्स ने भी आज तक को नमस्ते कर दिया। और जो अभी भी नाम मात्र के लिए जुड़ें हुए है वे विकल्प तलाश रहे है। चैनल में जो टीम भावना थी वह उसकी ताकत थी ,अब यह ताकत तार तार हो गयी है। अब यहाँ कई ग्रुप बन गए है जिनका दिमाग अपने लोगों को लाने और दूसरे ग्रुप के लोगों को निपटाने में ही लगा रहता। सब अपनी नौकरी बचाने में लगे हुए है।
जब से मैनेजमेंट में टॉप के चार पांच लोग चैनल छोड़कर गए है तब से चैनल में पत्रकार और कर्मचारी तनाव में काम कर रहा है। चैनल की ही एक बड़े पत्रकार ने मुझसे कहा ” यहाँ मैनेजटमेंट और एचआर का दखल एडिटोरियल यानी सम्पादकीय विभाग में ज्यादा हो हो रहा है। इस लिए असाइनमेंट से लेकर आउटपुट तक सभी उनके हिसाब से काम कर रहे है। डर के मारे वे चैनल में हज़ारी तो लगते है लेकिन अपना दिमाग नहीं लगा रहे है। बकौल एक सीनियर अधिकारी के “इनके पास रचनात्मकता और दूरदर्शिता का अभाव है।” चैनल में 90 % खबरें ANI से ली हुयी चल रही है। चैनल के अपने सोर्स की खबरें रह ही नहीं गयी है। आज तक भी वही चलता है जो बाकी के चैनल चलते है। ऐसे में भला कोई क्या चैनल को देखे ? केवल एंकर का ही फर्क है , चैनल में एंकर अभी रिपोर्टर की भूमिका भी निभा रहे है। मानवीय एंगल और सॉफ्ट खबर से तो जैसे कोई सरोकार ही नहीं रह गया है। पैसों के चक्कर में खबर ही उड़ा दी जाती है। उन्हें एचआर बताता है की क्या करना है।
टीवी टुडे नेटवर्क ने डिजिटल पर ज्यादा फोकस किया है। इसमें भारी भरकम वेतन पर लोगों को भर लिया है। इसमें खर्च ज्यादा है और आय कम। इसमें भी जमीन और जनहित से जुड़ीं खबरे कम होती है। चैनल का ज्यादातर दिमाग इवेंट में लग रहा है। चैनल मीडिया हाउस कम ,बल्कि कॉर्पोरेट बिजनेस हाउस ज्यादा बन कर रह गया है। न्यूज़ के फॉर्मेट में विज्ञापन इससे इन्हे अच्छाई कमाई तो हो रही है ,लेकिन चैनल की प्रतिष्ठा और टीआरपी लगता कम होती जा रही है। इसका असर चैनल को मिलाने वाले विज्ञापनों पर पड़ा हो वे लगातार कम होती जा रहे है। यानी पैसा भी जा रहा है और प्रतिष्ठा भी जा रही है। देश के बड़ी गोदी मीडिया में आज तक का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। दे। आज तक का जो वैल्यू सिस्टम था वह सम्समाप्त हो गया है। वही वजह है कि मीडिया जगत का सबसे बड़ा जहाज लगातार डूब रहा है। इसका दुःख सबको है।