– दिल्ली दर्पण ब्यूरो
नई दिल्ली। मानव अधिकार कितनी प्रासंगिक है और उनकी हद क्या है इस पर देश और दुनिया भर में विवाद और चर्चा का विषय बना हुआ है। मानव अधिकारों पर भारत में भी बुद्धिजीवियों के बीच बहस होती है की मानव अधिकार के मानक क्या होने चाहिए और क्या है। इसी विषय पर आज सुप्रीम कोर्ट में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस आयोजन मानव अधिकार जागरूकता अभियान की शुरुआत पोस्टर का लोकार्पण द्वारा की गयी। मानवाधिकार जागरूकता पोस्टर का लोकार्पण श्री अरूप बनर्जी ( AOR ,सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ), केंद्र सरकार , उत्तर प्रदेश सरकार के वकीलों द्वारा किया गया।
इस अवसर पर बोलते हुए ज्यूडिशियल काउंसिल के चेयरमैन राजीव अग्निहोत्री ने मानव अधिकारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मानव अधिकार वे अधिकार है जो मानव व्यवहार से सम्बंधित कुछ निश्चित मानक स्थापित करते है। मानवाधिकारों को कानूनों के द्वारा स्थानीय स्तर से लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर सरंक्षित होते है। ये अधिकार ऐसे आधारभूत अधिकार है जो मानव को जन्म के साथ ही प्राप्त होते है। इन अधिकारों को ना कोई छीन सकता है और ना ही व्यक्ति के जन्म स्थान ,आयु , जाती , भाषा और धर्म का इन अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ये सबके लिए सामान है। राजीव अग्निहोत्री ने कहा कि श्री अरूप बैनर्जी का जिक्र करते हुए कहा कि मानव अधिकारों के सरंक्षण की दिशा में उनके योगदान को देखते हुए है इस पोस्टर का लांच इनकेइनके सम्मान में इनके कर कमलों द्वारा करवाया जा रहा है। श्री अग्निहोत्री ने कहा कि श्री अरूप बनर्जी जी ने ‘मानवाधिकार परमो धर्म: के सिद्धांत की व्याख्या कर न्याय के छेत्र में इसे स्थापित करने का काम किया है ।
इस मौके आप;बोलते हुए श्री बनर्जी ने कहा “ मानवाधिकार या मानव अधिकार की परिभाषा करना सरल नही है। किन्तु इसे नकारा भी नहीं जा सकता हैं। मानव समाज में कई स्तर पर कई विभेद पाए जाते हैं। भाषा, रंग मानसिक स्तर, प्रजातीय स्तर आदि, इन स्तरों पर मानव समाज में भेदभाव का बर्ताव किया जाता हैं। ” इन सबके बावजूद कुछ अनिवार्य सभी समाजों में समान हैं। यही अनिवार्यता मानव अधिकार है जो एक व्यक्ति को मानव होने के कारण मिलना चाहिए। भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा देती है।
एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया श्री प्रियांशु राज के मुताबिक “मानवाधिकार व्यक्ति के वे अधिकार है जिनके बिना मानव अपने व्यक्तितव के पूर्ण विकास के बारे में सोच भी नही सकता, जो कि मानव में मानव होने के फलस्वरूप अन्तर्निहित हैं। जो एक मानव होने के नाते निश्चित रूप से मिलना चाहिए । उन्होंने कहा कि ज्यूडिशियल काउंसिल द्वारा मानवाधिकार जागरूकता अभियान पोस्टर लोकार्पण में शामिल होकर मुझे बहुत गर्व महसूस हो रहा है।
श्री अमिताभ पोद्दार , एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया “मानवाधिकार प्रकृति द्वारा प्रदत्त अधिकार है, इसलिए समय तथा परिस्तिथियों मे परिवर्तन में होने पर भी अधिकारों के स्वरूप में विशेष परिवर्तन नही होता हैं। मानवाधिकारों को स्वाभाविक अधिकार भी कहा जाता हैं। अर्थात् कुछ अधिकार मानवीय स्वभाव का अंग बन जाते हैं। अधिकारों से व्यक्ति को स्वतंत्रता की गारंटी मिलती हैं, शोषण और अत्याचारों से मुक्ति मिलती है तथा समाज मे ऐसे वातावरण का जन्म होता है जिस वातावरण मे व्यक्तित्व विकास के समुचित अवसर सभी को प्राप्त होते हैं।
सेमिनार के अंत में ज्यूडिशियल काउंसिल चेयरमैन राजीव अग्निहोत्री मानव अधिकारों के उल्लंघन पर भी चिंता जाहिर की।