Sunday, May 5, 2024
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दिल्ली में सात सौ साल पुराना मठ आज भी है भक्ति का प्रमुख केंद्र

डिम्पल भारद्वाज, संवाददाता

नई दिल्ली।। बाबा श्याम गिरी संवाई मठ को गुर्जर, और खासकर डेढ़ा समाज की आस्था के प्रतीक के रुप में जाना जाता है। यमुनापर स्थित इस मंदिर में गुर्जर समाज के लोग दूर-दूर से बाबा के दर्शन करने आते हैं। इस मठ में पूर्वी और उत्तर-पूर्वी दिल्ली में गुर्जर समाज के डेढ़ा गोत्र के चौबीस गांव हैं। उनकी आस्था बाबा श्याम गिरी संवाई मठ से जुड़ी हुई है।

मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर के साथ ही सबसे पहले भगवान शिव के प्रिय भक्त और वाहन नन्दी के दर्शन होते हैं। वे मंदिर के ठीक सामने विराजमान हैं। नन्दी के सामने ही मंदिर का मुख्य द्वार है, जिसमें प्रवेश करने पर हिन्दू धर्म के सभी पूजनीय देवी-देवताओं की सुंदर प्रतिमाएं स्थापित हैं। वहीं इसी मंदिर के प्रांगण में मठाधीश महन्त श्री रमन गिरि जी महाराज(चौबीस ग्राम) श्रृद्धालुओं को आशिर्वाद देते हैं। ठीक उसी के पास एक अखण्ड ज्योति और अखण्ड धूनी हर वक्त जलती रहती है, जो इस मठ की शक्ति और भक्ति का प्रतीक है।

करीब 7 सौ साल पुराने यह मठ को लगभग 10 एकड़ में फैला है और इस मठ के कई हिस्से हैं। पहले हिस्से में भगवान शिव का प्रचीन और भव्य मंदिर है। जहां भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है। कुछ बड़े—बुजुर्ग बताते हैं कि शिवलिंग की स्थापना प्राचीन समय में ही हो गई थी। यही वजह है कि सावन महीने में मंदिर में बाबा भोलेनाथ की विशेष अराधना के लिये हर समाज से लोग दूर-दराज से आते हैं। इस मठ में एक गुफा भी है, जहां मठ के प्रथम मठाधीश की समाधी है। श्रृद्धालु समाधी के दर्शन कर दण्डवत प्रणाम करते हैं। इसी मंदिर के नीचे एक और मंदिर स्थित है, जिसमें देवी-देवताओं की प्रतिमा के साथ ही श्रीश्याम बाबागिरी संवई जी की भी प्रतिमा मौजूद है। मंदिर के ठीक पीछे एक बरगद का पेड़ है। मान्यता है कि इसी पेड़ के नीचे बैठकर श्री श्याम बाबागिरि संवई जी ने तपस्या की थी। 

मंदिर के बांई तरफ मंदिर की ओर से श्रृद्धालुओं को प्रतिदिन भोजन कराया जाता है। प्रत्येक रविवार के दिन यहां विशेष कीर्तन और भंडारे का आयोजन किया जाता है। मंदिर के ठीक सामने एक हवनकुंड बना है, जहां विशेष अनुष्ठान के आयोजनों पर हवन किए जाते हैं। श्रृद्धालु इस हवन कुंड की परिक्रमा करते हैं। मंदिर के दूसरे हिस्से में एक गौशाला है, जहां महंत गिरिजी महाराज गौ-सेवा करते हैं। भक्त भी यहां गौ-सेवा के लिये दान देकर जाते हैं। मठ 7 सौ साल पुराना है लिहाज़ा इसकी मान्यता भी उतनी ही बड़ी है यहां बड़ी संख्या में साधू-संत सेवा और अराधना के लिये पहुंचते हैं। लिहाज़ा उनके ठहरने के लिये भी मठ में विशेष इंतज़ाम किये जाते हैं।

मंदिर के एक छोटे से हिस्से में एक अस्तबल बना हुआ है, जहां एक सुंदर श्वेत घोड़ा बंधा रहता है। इस घोड़े की खासियत है कि वह मठाधीश के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति को सवारी नहीं करने देता। मठ की इन तमाम विशेषताओं के बाद अब एक विशेषता और इसके साथ जल्द जुड़ने वाली है क्योंकि यहां गरीब बच्चों को लिये गुरुकुल का निर्माण कराया जा रहा है, ताकि गरीब और जरुरतमंद बच्चे पढाई—लिखाई के साथ ही मंत्रोच्चारण भी सीख सकें।

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