नेहा राठौर
एक तरफ जहां देश की राष्ट्रीय राजधानी के लोग बारिश के आने से राहत की सांस ले रही है। वहीं नॉर्थ वेस्ट दिल्ली में आदर्श नगर स्थित पाकिस्तानी हिन्दू रिफ्यूजी कैंप और रोहिणी सेक्टर-25 स्थित शरणार्थी कैंप में लोगों के घर तालाब बन चुके हैं। इस जगह को देख कर कोई नहीं कह सकता कि यहां कोई रह भी सकता है।
ये वही हिंदू परिवार हैं जो बड़ी उम्मीदों के साथ पाकिस्तान में तमाम तरह की प्रताड़ना झेलने के बाद भारत आये थे, उन्होंने सोचा था कि यहां की सरकार उनका ख्याल रखेगी लेकिनआज जिन हालातों में ये लोग रहने को मजबूर हैं, उसे देख कर ही लगता है कि बड़े-बड़े नेताओं ने बस इन शरणार्थियों के साथ फोटो सेशन ही किया है, बाकी दिया कुछ भी नहीं। इनके कैम्प्स में न तो बिजली है, न जल निकासी की कोई व्यवस्था है। यहाँ रह रहे शरणार्थियों के लिए मानों पाकिस्तान कुँआ था तो भारत खाई की तरह है। कुछ परिवार वापिस पाकिस्तान भी चले गए, बाकी जो यहाँ रह गए हैं उन्हें समझ नहीं आ रहा कि क्या करें।
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नागरिकता संशोधन कानून बना एक सवाल
पहले कोरोना और अब बारिश ने इनसे रोजगार के अवसर छीन लिये। अब सवाल यह है कि मुफलिसी में जीवन काट रहे इन बच्चों का भविष्य आखिर क्या होगा? बहरहाल नागरिकता संशोधन कानून के संसद में पास होने के दो साल बाद भी इनमें से कोई भी भारत का नागरिक नहीं बन सका है। लिहाजा इन्हें कभी कोई सरकारी मदद भी नहीं मिलती। कुछ NGO और समाजसेवियों के भरोसे आखिर कितना काम चल सकता।
यदि प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधि चाहे तो मानवता के लिये ही सही कुछ जरूर कर सकते हैं लेकिन वो भला क्यों करें। ये शरणार्थी उनके लिए वोट बैंक जो नहीं हैं। मदद के लिए गुहार लगाने गए भी तो सिवाय कोरे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिलता। शायद इस खबर के माध्यम से ही एक बार फिर सरकारों की नज़र इनकी तरफ जाए और शायद कुछ मदद के हाथ इनकी ओर भी आए।
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