ब्यूरो रिपोर्ट
भारत मौसम विज्ञान विभाग ने अगले दो दिनों में देश के विभिन्न हिस्सों में बारिश, आंधी और बिजली गरजने की चेतावनी जारी की है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में मानसूनी हवाओं के बदलते रूख के कारण हवा के दबाव की दिशा दक्षिण-पश्चिम की ओर हो गई है। वातावरण में नमी बढ़ने लगी है जिसके कारण बेरिश की संभावना है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग ने बताया कि मानसून तेजी से भारत में प्रवेश कर रहा है। हवा के बढ़ते दबाव के कराण 10 और 11 जून को अरुणाचल प्रदेश में और अगले पांच दिनों तक असम व मेघालय में मूसलाधार बारिश की चेतावनी दी है। देश के बाकी हिस्सों में भी मानसून सामान्य गति से आगे बढ़ रहा है और अगले दो दिनों में इसके महाराष्ट्र पहुंचने की संभावना है। मौसम विज्ञान कार्यालय ने इसकी जानकारी साझा की है।
आईएमडी के वैज्ञानिक आरके जेनामणि ने बताया कि मानसून ने 29 मई को केरल तट पर दस्तक दी थी और 31 मई से सात जून के बीच दक्षिण एवं मध्य अरब सागर, पूरे केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में पहुंच गया। मानसून में कोई विलंब नहीं है। तेज हवाएं हैं और अगले दो दिन में बादल बनने लगेंगे। अगले कुछ दिनों तक अरुणाचल प्रदेश, असम और मेघालय में भारी बारिश का पूर्वानुमान है। असम में पिछले महीने भी बाढ़ आ चुकी है। मानसून पूर्व हुई भारी बारिश और उससे आई बाढ़ की वजह से सड़क, रेल पटरियों और पुलों सहित अवसंरचना को भारी नुकसान हुआ।
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आने वाले अगले दो दिनों में गोवा और महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में मानसून के के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं।
जेनामणि ने बताया कि दिल्ली-एनसीआर और देश के पश्चिमोत्तर भारत तक क्या मानसून सामान्य तारीख तक पहुंच जाएगा या नहीं इस बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। पिछले साल आईएमडी ने पूर्वानुमान लगाया था कि दिल्ली तक मानूसन 27 जून की सामान्य तारीख से दो सप्ताह पहले ही पहुंच जाएगा, लेकिन यह 13 जुलाई को पहुंचा जो गत 19 साल में सबसे देरी से पहुंचने का रिकॉर्ड है।
आपको बता दें कि इस साल दक्षिण पश्चिम मानसून सामान्य रहेगा और गत 50 साल के औसत 87 सेंटीमीटर वर्षा के मुकाबले 103 प्रतिशत बारिश होगी। यह लगातार सातवां साल होगा जब जून से सितंबर के बीच देश में सक्रिय रहने वाले मानूसन के दौरान देश में सामान्य वर्षा होगी। देश में वार्षिक वर्षा में मानसून का योगदान लगभग 70 प्रतिशत होता है। मानसूनी वर्षा को कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी माना जाता है। इसलिए सबकी आस मानसून पर टिकी है।
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