Friday, May 24, 2024
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Sahara India : जब मोदी भी आ गए थे सुब्रत राय की कारस्तानी की चपेट में !

Sahara India : नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए सहारा से पैसे लेने का लगा था आरोप 

सी.एस. राजपूत 

सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय का काम करने का अंदाज कितना शातिराना है कि उनकी करतूतों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नहीं बच पाए। सुब्रत राय से जोड़कर मोदी पर भी सहारा से पैसे लेने का आरोप लग चुका है। मामला उस समय का बताया जाता  जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।  यही वजह रही है कि सहारा से पैसे लेने के मामले में स्वराज इंडिया से जुड़े प्रशांत भूषण और संगठन के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने जोरदार हमला मोदी पर बोला था। प्रशांत भूषण ने तो सुप्रीम कोर्ट तक में इस मामले की जांच के लिए अपील तक कर दी थी। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस मामले पर जनता की अदालत में फैसला कराने पर तुले थे। 

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने तो सहारा पर मोदी से अपने सवालों का सीधा जवाब मांगा था। उन्होंने कहा था कि आखिर जब सारे चिटफंडिये जेल की सलाखों के पीछे पहुंच चुके हैं तो सहारा और एक-दो चिटफंडियों पर रियायत क्यों दी जा रही है ? गरीबों के मसीहा बने मोदी सरकार क्यों इस मामले में दरियादिली दिखा रहे हैं, जबकि निवेशकों और एजेंटों के अलावा सहारा मीडिया कर्मचारी भी अपनी सैलरी के लिए सुब्रत की पोल खोलते हुए सत्ता के तमाम दरवाजों को खटखटा चुके हैं। 

राहुल गांधी ने सवाल किया था कि प्रधानमंत्री साफ करें कि सहारा से उन्होंने पैसे लिए या नहीं ? प्रधानमंत्री को अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए। ऐसे में प्रश्न उठता है कि चिटफंडियों के मसीहा समझे जाने वाले सहाराश्री जेल से बाहर कैसे आये? सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जो पैसा सहारा कंपनी सेबी में जमा कराई है वो पूंजी कहां से आ रही है ? कहीं गरीबों से फिर से वसूली जा रही रकम ही तो नहीं है ? 
  कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गत दिनों मेहसाणा (गुजरात) में आयोजित एक रैली में कहा था कि सहारा समूह पर पड़े छापे के बाद छह महीने में सहारा समूह के लोगों ने नरेंद्र मोदी को नौ बार करोड़ों रुपए दिए। मोदी को सहारा के बाद बिड़ला ग्रुप के लोगों ने भी पैसे दिए। इसकी पूरी जानकारी तारीख-दर-तारीख और विस्तार से मौजूद है। 
 राहुल के इस सनसनीखेज आरोप से हड़कंप मच गया था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आखिर उस आरोप का खुलासा जो कर दिया यह, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री के निजी भ्रष्टाचार की जानकारी है। राहुल ने कहा था कि पीएम मोदी ने गुजरात का सीएम रहने के दौरान सहारा कंपनी से 6 महीने में 9 बार पैसे लिए थे। आईटी के छापे में इसका खुलासा हुआ था।  उन्होंने बकायदा रैली के मंच से चिट लहराते हुए ये आरोप लगाए थे। 

राहुल गांधी ने कहा था कि 2013 में पड़े आईटी के छापे के बाद सामने आया था कि सहारा ने नरेंद्र मोदी को पैसा दिया। आरोप लगाया गया था कि सहारा के लोगों ने अपनी डायरी में लिखा है कि हमने 6 महीने में 9 बार नरेंद्र मोदी जी को पैसा दिया है। आपने मुझे संसद में बोलने नहीं दिया। आप मेरे सामने खड़े होने को तैयार नहीं थे।  पता नहीं क्या कारण था? कोई बिजनेस चलाता है तो वो उसका रिकॉर्ड रखता है. किसको कितने पैसे दिए कितने लिए. 22 नवंबर 2014 को सहारा पर रेड हुई।  सहारा के रिकॉर्ड में जो लिखा था वो बताता हूं। 

उन्होंने कहा था कि 30 अक्टूबर 2013 को ढाई करोड़ मोदी जी को दिया गया था। 12 नवंबर 5 करोड़ दिया गया।  29 नवंबर को 5 करोड़ लिखा था था।  6 दिसंबर को 5 करोड़ दिया गया था।  19 दिसंबर को 5 करोड़ दिया गया था। 14 जनवरी 2104 को 5 करोड़,  28 जनवरी को 5 करोड़,  22 फरवरी को 5 करोड़ दिए गए थे। 

राहुल गांधी ने कहा था कि छह महीने में 9 बार सहारा ने मोदी जी को पैसा दिया है।  ये जानकारी ढाई साल से आयकर के पास है।  इस पर जांच होनी चाहिए।  इस पर जांच क्यों नहीं हुई? ये सच है या झूठ, देश को बताइए मोदी जी। आपने पूरे देश को लाइन में रखा, उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाया।  अब मैं देश की ओर से पूछ रहा हूं जो ये इनफार्मेशन इनकम टैक्स के पास है, क्या यह सच है और इसमें जांच कब होगी? ऐसा ही एक रिकॉर्ड बिरला कंपनी का है. मोदीजी आप प्रधानमंत्री हैं, आपके ऊपर सवाल उठाए जा रहे हैं अब आप देश को बताओ कि यह सच है कि नहीं? आप एक निष्पक्ष जांच इस मामले में कराइए. बिरला का भी रिकॉर्ड है. आप पीएम हैं, आप पर सवाल है. आयकर के साइन हैं. आप खुद बताइए कि यह सच है या नहीं?  

सहारा से मिले पैसे के मामले पर मोदी की चुप्पी मामले को गरमा रही थी। हालांकि कुछ दिनों तक मामला गर्म रहने के बाद ठंडा पड़ा गया। 

दरअसल देश भर के सारे चिटफंडियों जैसे रोज वैली की संपत्ति कुर्क  कर ली गई। कितने चिटफंड कंपनी के निदेशकों को जेल की सलाखों के पीछे डाल डाल दिया गया। निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक किसी भी चिटफंडी को जमानत तक नहीं दी गई। पर तमाम आरोपों के बावजूद न तो सहारा की कोई सम्पत्ति ही नीलाम हुई और न ही अपनी माता के निधन पर 2016 में पैरोल पर जेल से बाहर आये सुब्रत राय को जेल ही भेजा गया। यहां तक कि अब सितम्बर 2022 चल रहा है पर उनकी पैरोल लगातार बढ़ती जा रही है। देशभर में तमाम मुकदमों के दर्ज होने के वावजूद उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। 

ऐसे में प्रश्न उठता है कि तमाम अनियमितताओं के बावजूद सहारा के मुखिया सुब्रत राय के बारे में तमाम एजेंसियां सुप्रीम कोर्ट के सामने क्यों नहीं खुलासा कर रही हैं ? बताया जा रहा है कि जेल के बाहर आकर भी सुब्रत राय कभी कोऑपरेटिव सोसायटी के नाम पर तो कभी बीमा बेचने के जरिए जनता से उगाही करने में लगे हैं। यह भी आरोप है कि आज भी पैसों को गलत तरीके से एक कंपनी से दूसरे में ट्रांसफर किया जा रहा है। यह सुब्रत राय का निवेशकों, एजेंटों के गुस्से के प्रति डर और राजनीतिक पैठ बनाने का तरीका ही है कि वह तमाम घाटे के बावजूद सहारा मीडिया को जिंदा रखा रखे हुए हैं।
आज भले ही सुब्रत राय बड़े शांत नजर आ रहे हों पर उन्हें ग्लैमर के साथ ही दबंगई के लिए भी जाना जाता रहा है। बुद्धिजीवियों को बुद्धूजीवियों के नाम से पुकारने वाले सुब्रत राय के एक आदेश पर एक मिनट के अंदर संयुक्त संपादक को जलील कर कैंपस से बाहर कर दिया गया था। एक संपादक को गार्डों के जरिए बेइज्जत करके इस्तीफा लिया गया था। ऐसा भी बताया जाता है कि सुब्रत राय के स्वास्थ्य के बारे में गलत खबर देने के चलते एक संपादक को बहुत अपमानित किया गया था। 

अपनी छवि खुद ख़राब करने वाले सुब्रत राय के दबंगई के साथ दरियादिली के भी किस्से आम हैं। यूपी के तमाम दलों के बड़े नेता खुलेआम स्वीकार करते रहे हैं कि उनके चलते ही वे आज बड़े नेता हैं।  इनमें पूर्व सांसद सीएन सिंह, कांग्रेस के राजसभा सांसद प्रमोद तिवारी, यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं के नाम शामिल रहे हैं। एक समय था कि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान यूपी के तमाम बीजेपी नेता अपनी सिफारिश सुब्रत राय से कराते थे। ऐसे ही समाजवादी पार्टी में भी रहा है। चाहे मुलायम सिंह मुख्यमंत्री रहे हों या फिर उनके बेटे अखिलेश यादव, कई समाजवादी पार्टी के नेता भी अपने लिए सुब्रत राय से सिफारिश कराते थे। यह सुब्रत राय का रुतबा ही था कि मायावती मुख्यमंत्री रहते हुए उनके न चाहते हुए बीएसपी के कई सांसद सुब्रत राय के यहां अपनी हाजिरी लगाते थे। 

दरअसल सुब्रत राय की जबर्दस्त राजनीतिक पैठ होने का बड़ा कारण यह भी रहा है कि चुनावों में कैश की खासी किल्लत रहती है। ऐसे में सुब्रत राय जैसे चिटफंडी ही काम आते हैं। यही वजह है कि राजनीतिक दल चिटफंडियों को पालते-पोसते हैं। जब हालात बिगड़ते हैं तो इन दलों के नेता  चिटफंडियों से पल्ला झाड़ लेते हैं। बताया जाता है कि कई नेताओं की अवैध कमाई का हिस्सा सहारा में लगा है। कहा तो यहां तक जाता है कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने बड़े स्तर पर अपना पैसा सहारा में लगा रखा था। बताया जाता है कि उनके निधन के बाद उनके परिजनों को उस पैसे का कोई हिसाब नहीं मिला। 

यह सुब्रत राय की राजनीतिक पैठ रही है कि तमाम आरोपों के बावजूद उनका कुछ नहीं बिगड़ पा रहा है।  यदि ऐसा नहीं है तो मल्टी लेवल मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव संस्थाओं के जरिए सहारा के ऑफिसों को क्यों पूरे देश में पैसे वसूलने की आजादी मिली है ?  

क्यों सहारा ग्रुप के ऑफिसों से ही मल्टी लेवल मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव संस्थाओं को संचालित किया जा रहा है ? सूत्र बताते हैं कि इन संस्थाओं से सुब्रत राय ने लिखित रूप से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखा है। कृषि मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक तो मल्टी लेवल मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव संस्थाओं के जिम्मेदार पदों पर सुब्रत राय सहारा श्री ने अपनी कठपुतलियों को बैठाया है। कार्रवाई किसके दबाव में रुकी है?

किस कारण आज की  तारीख में सुब्रत राय के परिवार का अब एक भी सदस्य सहारा इंडिया परिवार का किसी भी अहम पद पर नहीं है ? जबकि अच्छे दिनों में बेटा-बहु से लेकर भाई-भतीजा तक मुख्य पदों पर रहते हुए सहारा कर्तव्य रोगियों की सलामी (सहारा प्रणाम) लेते रहे हैं। 

सहारा जिन मल्टी लेवल मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव संस्थाओं और बीमा कंपनी के जरिए पूंजी जुटा रही है, आखिर उस पूंजी के लेन-देन की दैनिक निगरानी क्यों नहीं की जा रही है ? जबकि सुब्रत राय की गतिविधियां संदिग्धता के दायरे में आ चुकी हैं। 

क्या मोदी सरकार उस समय जागेगी, सहारा निवेशकों और एजेंटों के फांसी लगाने की लाइन लग जाएगी। यह जमीनी सच्चाई है कि दबाव बनाने और बेजा फायदे के लिए मीडिया कंपनी खोलने वाले सुब्रत राय की मनमानी के चलते ही सहारा मीडिया भारी घाटे में रीढ़हीन और पंगु दिखाई देता है।  सहारा इंडिया के खिलाफ निवेशक और एजेंट  तो प्रोटेस्ट कर रह हैं। सहारा मीडिया के कर्मचारी भी अपने एक साल से ज्यादा की सैलरी के लिए सुब्रत राय की कृपा की बाट जोह रहे हैं पर सुब्रत राय की  मुख्य चिंता बकाया सेलरी और निवेशकों के भुगतान से ज्यादा ग्लैमरस पार्टी में होती हैं। 
 
देश के गरीबों का पैसा मारने वाले चिटफंडियों के मसीहा बन चुके सुब्रत राय पैरोल पर जेल के बाहर हैं। रिहाई के बदले सुब्रत राय से सुप्रीम कोर्ट सैकड़ों करोड़ जमा कराते जा रही है। बड़ा सवाल है कि यह पैसा क्या सुब्रत राय अपने पास से दे रहे हैं या फिर गरीबों से ही नये तरीके से वसूली जा रही रकम में से ही एक हिस्सा जमा कराया जा रहा है। पैरोल पर जेल बाहर घूम रहे सुब्रत राय अपने धंधे को फिर से चमकाने में लगे हैं। गत दिनों कई राज्यों की राजधानी में ग्लैमर शो आयोजित किये गए थे। नेताओं और अधिकारियों को इसमें मेहमान बनाया था था। खुलेआम ये खेल उस मोदी सरकार के नाक के नीचे चल रहा था जो दावा करती है कि ना खायेंगे ना खाने देंगे। मोदी सरकार अदालतों को दोषी ठहरा कर पल्ला नहीं झाड़ सकती ?  

चिटफंडिये गरीबों का पैसा सीधे अंदर करने के लिए सरकारी पॉलिसी की खामियों, सत्ता और प्रशासन के ढुलमुल रवैये फायदा उठाते हैं। उदाहरण के लिए अपने कामकाज के पाक-साफ बताने के लिए कुछ सालों से चिटफंडिये कोऑपरेटिव सोसायटी के तहत रजिस्ट्रेशन कराकर, चंद कागजी खानापूर्ति के जरिए देश के दूरदराज के अंचलों में गरीबों से अरबों-खरबों की वसूली करते हैं।  शिकायत होने पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हो पाती है क्योंकि कोऑपरेटिव सोसायटी का रजिस्ट्रेशन कृषि मंत्रालय में होता है। घपले होने की शिकायत पर कृषि मंत्रालय सीमित कार्रवाई ही कर सकती है, जिसके चलते चिटफंडिये बेखौफ हैं। कृषि मंत्रालय के अधिकारी भी सब कुछ जानते हुए भी सहारा जैसी कंपनियों के दोहन पर कोई सख्त कदम नहीं उठा रहा हैं,   जो अलग-अलग नामों से कार्यरत हैं,  जिसके कारण सत्ताधीशों पर भी सवाल खड़े होते हैं। 

स्थानीय स्तर पर कार्रवाई और दबावों से बचने के लिए चिटफंडिये लंबे समय से मीडिया में भी पैसा लगा लगा रहे हैं, जिसकी कायदे से शुरुआत सुब्रत राय ने की। यानि कि जो पत्रकार ऐसे चिटफंडियों को बेनकाब करता रहा है, अब ऐसी कंपनियों का कर्मचारी बन कर गया है। सही गलत दलील देकर अपने पेट पालने वाली सैलरी को बचाने की जुगाड़ में लग गया है। इसमें दो राय नहीं है कि चिटफंडियों ने पत्रकारों को तनख्वाह का लालच देकर पीत पत्रकारिता को बढ़ावा दिया है। सत्ताधारियों ने भी कुंद होती जा रही पत्रकारिता में ऐसे चिटफंडियों को जमकर सपोर्ट किया है। गरीब को लूटने वाले केवल सुब्रत राय सहारा ही नहीं, वो राजनेता भी कसूरवार हैं जो इन चिटफंडियों के जरिए चुनावों में अरबों रुपये कैश में पाते हैं और पानी की तरह बहाते हैं। 

कानूनी दांवपेंचों और खामियों का सहारा लेकर चिटफंडिये गरीब आदमी के पैसों का दोहन करने के लिए कई रास्तों का सहारा लेते हैं। इनके निशाने पर हमेशा गरीब आदमी ही होता है।  जो अपने खून-पसीने की कमाई के चंद हजार रुपयों को वापस पाने के लिए कोर्ट-कचहरी तक नहीं पहुंच पाता। चिटफंडिये देश भर में एजेंटों का जाल बिछाकर लाखों-करोड़ों रुपए गरीबों से एजेंटों के माध्यम से लूटते रहते हैं। एजेंट भी स्थानीय निवासी होते हैं, जो कुछ हजार की सैलरी की लालच में अपने करीबी लोगों को बहकाकर पैसा जमा कराते रहते हैं। सहारा इंडिया में अब एजेंटों को इसी भुगतान के लिए अपमानित होना पड़ रहा है। 

कुछ भी हो चिटफंड कंपनियों के मामले में 2014 तक चली केंद्र की कांग्रेस सरकार को इसका श्रेय देना होगा कि उसने सभी बड़े चिटफंडियों को सलाखों के पीछे भेजकर इस तरह के धंधे पर लगाम कस दी थी, लेकिन चिटफंडियों के सरताज की रिहाई के लिए किसी हद तक मोदी सरकार की अब तक की अनदेखी जिम्मेदार दिखाई दे रही है। चिटफंडियों ने गरीबों के दोहन के लिए नये-नये तरीकों को ईजाद कर लिया है। कानूनी एजेंसियां और सरकार भी चिटफंडियों के वसूली के नये-नये तरीकों को बखूबी जानती है। कार्रवाई तब होती है जब पानी नाक के ऊपर जाने लगता है।

अवध के नवाबों का अजीज लखनऊ जब अपने अतीत को याद करने के सिवा कुछ खास नहीं किया करता था, तब 1990 के दशक में सुब्रत रॉय सहारा यहां कुछ दिलचस्प चीजें लेकर आए। गोरखपुर से आए इस शख्स ने इस शहर में अपनी खास पहचान बना ली। मुंबई, बंगलुरु और नई दिल्ली की नामचीन शख्सियतों से लेकर चीफ मिनिस्टर तक अपनी पहुंच रखने वाले सुब्रत रॉय ने गोमती नदी के किनारे 240 एकड़ की सहारा शहर लग्जरी टाउनशिप को यहां आने वालों के लिए एक बार जरूर देखने लायक चीज बना दी।

चाहे 1980 के दशक की फिल्मों के सदाबहार ऐक्टर्स रहे हों, किशोरावस्था में चमक बिखेरते स्पोर्ट्स स्टार हों, ग्लोबल टेकओवर के लिए बाहें फैलाते बिजनसमेन रहे हों या सोशलाइट्स, ये सभी सुब्रत रॉय से दोस्ती की कसमें खाते रहे और सहारा शहर की चमक में इजाफा करते रहे। सहारा ग्रुप की एक दिलचस्प अदा ने सुब्रत रॉय को चीफ मैनेजिंग वर्कर का ओहदा भी दिया। वह पैराबैंकिंग से लेकर एयरलाइन और रियल एस्टेट तक फैले अपने बिजनेस एंपायर के चेयरमैन या एमडी नहीं बने। बाहरी दुनिया के लिए उन्होंने खुद को सहाराश्री का नाम दिया।

सुब्रत रॉय के दोस्तों में हर राजनीतिक दल के लोग हैं। समय बीतने के साथ उन्हें मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी के ज्यादा करीब माना जाने लगा, लेकिन मुलायम से पहले गोरखपुर के कांग्रेस नेता वीर बहादुर सिंह के साथ रॉय की करीबी रही। हालांकि, 1990 में पेरिस में वीर बहादुर सिंह की रहस्यमय मौत ने रॉय से राजनीतिक सहारा छीन लिया। यही वह दौर था, जब यूपी के छोटे कारोबारियों और ग्रामीणों से मनी कलेक्शन का सहारा का बिजनेस फूलने-फलने लगा था। फंड से लैस रॉय लखनऊ आए और यहां उन्होंने अपना बेस स्ट्रक्चर बनाया, जो आगे चलकर उनके अरबों डॉलर के एंपायर की नींव बना। जल्दी ही उन्होंने बॉलीवुड के सितारों के साथ ऐसी पार्टियां देनी शुरू कीं, जिनसे नवाबों का शहर चकाचौंध हो गया।

मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां इस नए शख्स से करीबी जताने में हिचक रही थीं। ऐसे में सुब्रत रॉय ने लोकल पॉलिटिक्स के ताकतवर लोगों पर नजर डालनी शुरू की, जो रॉय की लकदक जिंदगी से हैरान थे। रॉय ने जल्द ही मुलायम सिंह यादव से दोस्ती गांठ ली, जिन्होंने 1989 से 1991 के दौरान मुख्यमंत्री रहते हुए खुद को काफी लो-प्रोफाइल रखा था। दिसंबर 1993 में मुलायम जब फिर सीएम बने तो दोनों के रिश्ते और गहरे हुए। इसमें अमर सिंह का भी योगदान रहा, जिन्होंने राजनीति में लंबे डग भरने शुरू कर दिए थे। अमर और रॉय की जोड़ी ने समाजवादी पार्टी में ग्लैमर का पहलू जोड़ा। मुलायम के 1996-98 के दौरान डिफेंस मिनिस्टर रहने के दौरान इस जोड़ी ने दिल्ली के गलियारों में उन्हें मजबूती दी।

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