Friday, May 3, 2024
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Sahara Protest : सहारा मीडिया से शुरू हुई थी सुब्रत राय के खिलाफ बगावत 

15 को देशभर में सहारा के जोनल ऑफिस घेर रहे हैं सहारा निवेशक 

सीएस राजपूत 

आज भले ही देशभर में सहारा इंडिया के खिलाफ आंदोलन चल रहा हो, भले ही ऑल इंडिया जनांदोलन संघर्ष न्याय मोार्च के बैनर तले निवेशकों और एजेंटों ने गत 9 को सहारा इंडिया के रीजनल कार्यालय घेरे हों और 15 को जोनल कार्यालयों को घेरने जा रहे हैं,  भले ही सहारा भुगतान को लेकर ठगी पीड़िता जमाकर्ता परिवार समेत कई संगठन सड़कों पर हों पर एक समय ऐसा भी था कि जब सहारा में कोई कर्मचारी, निवेशक या फिर एजेंट कान नहीं फड़ाफड़ा सकता था। सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय ने ऐसा टेरर प्रबंधन द्वारा बना रखा था कि कर्मचारी दबी जुबान में भी किसी अधिकारी की बुराई नहीं कर सकते थे। सुब्रत राय उनकी पत्नी स्वप्ना राय, दूसरे नंबर के निदेशक ओपी श्रीवास्तव, जेबी राय और सुब्रत राय के दोनों बेटे सीमांतो राय और सुशांतो राय के खिलाफ तो सोच भी नहीं सकते थे। 

प्रबंधन इन लोगों के नाम से ही कर्मचारियों में भय का माहौल बना रखा था। यह कर्मचारियों को सहारा प्रबंधन का डर ही था कि 2015 में प्रबंधन कर्मचारियों को वेतन नहीं दे रहा था जबकि नोएडा के सहारा परिसर में इनकम टैक्स छापे में डेढ़ सौ करोड़ रुपये बरामद हुए थे। यह सुब्रत राय का अपने टेरर पर विश्वास ही था कि वह चौड़े होकर बोलते थे कि सहारा में न तो हड़ताल हो सकती है और न ही कोई यूनियन बन सकती है। शायद सुब्रत राय ने यह समझने की कोशिश कि देश और दुनिया में हर तानाशाह के खिलाफ बगावत हुई है। सुब्रत राय के खिलाफ भी हुई और सहारा में भी हुआ।  सुब्रत राय के खिलाफ यह बगावत हुआ नोएडा के सहारा मीडिया में। वे मीडियाकर्मी ही थे जिन्होंने सबस पहले सुब्रत राय को ललकारा था।

दरअसल 2014 में जब सहारा सेबी विवाद में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करने पर सुब्रत राय की गिरफ्तारी हुई तो उन्होंने अपने कर्मचारियों को एक पत्र लिखा था कि उनका स्वाभिमान जेल में चला गया है तो जेल से बाहर निकलने में उनकी मदद करें। उस समय कर्मचारियों को सही से वेतन नहीं मिल रहा था तब भी कर्मचारियों ने जितना बना सुब्रत राय की मदद की। उस समय सुब्रत राय के प्रति कर्मचारियों में इतना भक्ति थी कि कितने कर्मचारियों ने तो अपनी पत्नी के जेवर तक बेचकर पैसे दिये थे। उस समय पता चला था कि सुब्रत राय के एक पत्र पर लगभग साढ़े १२ सौ करोड़ रुपये जमा हुए थे। यह वह दौर था जब सहारा कर्मचारियों को कई महीने से वेतन नहीं मिला था और प्रबंधन ने एक स्लैब बना दिया था, जिसके चलते कर्मचारियों का कई महीने का बकाया हो गया था। सहारा का यह वह दौर था कि मालिकान से लेकर प्रबंधन तक सब मजे मार रहे थे। 

गाड़ियां लगातार दौड़ रहे थी। सभी अधिकारियों की किसी सुविधा में कोई कटौती नहीं की गई थी पर कर्मचारी बेहाल थे। 2015 में एक दिन अचानक सहारा टीवी चैनल के कर्मचारी नोएडा के परिसर में नीचे उतर आये और आंदोलन करने लगे। किसी तरह से उन्हें समझाकर काम पर भेज दिया गया। जब प्रबंधन के आश्वासन के अनुसार उन्हें वेतन नहीं मिला तो फिर से वे लोग आंदोलन करने लगे फिर से प्रबंधन ने उन्हें समझाकर काम पर भेज दिया। यह सब प्रिंट मीडिया के साथी भी देख रहे थे। उनके अंदर भी प्रबंधन की बेशर्मी के प्रति आक्रोश था। जब प्रबंधन अपने कई वादों से मुकर गया तो अचानक एक दिन राष्ट्रीय सहारा संपादकीय विभाग से बृजपाल चौधरी और चरण सिंह की अगुआई में प्रिंट मीडिया के कर्मचारी बकाया वेतन को लेकर आंदोलन करने लगे। यह आंदोलन ही सही मायने में सहारा प्रबंधन के खिलाफ बगावत थी। कुछ ही देर बाद टीवी चैनल के कर्मचारी भी परिसर में आ गये और सहारा मीडिया का आंदोलन शुरू हो गया। आंदोलन ने ऐसा जोर पकड़ा कि रात होते-होते, लखनऊ, देहरादून, वाराणसी, पटना, गोरखपुर राष्ट्रीय सहारा अखबार के लगभग सभी ऑफिसों पर आंदोलन शुरू हो गया। 

टीवी चैनल के बुलेटिन भी रोक दिये गये। यह आंदोलन पांच दिन तक चला। मतलब पांच दिन तक सहारा मीडिया में कोई काम नहीं हुआ। तत्कालीन सीईओ राजेश कुमार ने मुख्य रूप से आंदोलन की अगुआई कर रहे बृजपाल चौधरी को सेट कर सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय के एक भावनात्मक पत्र पर आंदोलन को तुड़वा दिया। आंदोलनकारियों को किसी तरह से मनाया गया। आंदोलन न तोड़ने की जिद पकड़े बैठे चरण सिंह को भी राजेश कुमार ने मना लिया।

स्वभाव के अनुकूल जब सुब्रत राय अपने वादे पर खरे न उतरे तो फिर से सहारा मीडिया में आंदोलन शुरू हुआ। यह आंदोलन गीता रावत और शशि राय के अगुआई में हुआ। इस आंदोलन को राष्ट्रीय सहारा के कई अधिकारियों का भी समर्थन प्राप्त था। आंदोलन बड़े सिस्टेमिक तरह से चला। यह आंदोलन मुंबई में बनी सहारा कामगार यूनियन के बैनर चले चल रहा था। यही सुमित राय जो आज की तारीख में मीडिया हेड हैं। आंदेालन होते देख भाग खड़े हुए थे। दरअसल जिस दिन सहारा के खिलाफ नारेबाजी हो रही थी उस दिन सुमित राय को मीडिया हेड बनाने की चर्चा थी और वह नोएडा परिसर में भी थे। बाद में पता चला कि वह भाग खड़े हुए हैं। 

हालांकि बाद में किसी बात को लेकर मुंबई की यूनियन से गीता रावत और शशि राय टीम का विवाद हो गया और मुंबई यूनियन से नाता तोड़ सहारा मीडिया वर्कर्स यूनियन बनाकर उसके गठन की तैयारी शुरू कर दी गई। यह आंदोलन तुड़वाया उपेद्र राय और विजय राय ने । सुब्रत राय ने राजेश कुमार को सीईओ पद से हटाकर उपेन्द्र राय को मीडिया हेड बना दिया। रणविजय सिंह को हटाकर विजय राय को ग्रुप एडिटर बना दिया गया। आंदोलन तुड़वाने में सहयोग करने के लिए उपेंद्र राय ने शशि राय को वाराणसी का संपादक बना दिया। हालांकि बाद में शशि राय को न केवल संपादक पद से हटाया गया बल्कि नौकरी से भी निकाल दिया गया।

यही वह आंदोलन था जिमसें सुब्रत राय ने आंदोलनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल तिहाड़ जेल बुलाया था और धमकी भरे लहजे में कहा था कि कोई भी नेता बनने की कोशिश न करे, सहारा में नेता तो एक ही है और वह सुब्रत राय है। यही वह आंदोलन था जिसमें प्रतिनिधिमंडल नोएडा परिसर से ही निर्णय लेकर गया था कि सुब्रत राय का अहंकार तोड़ने के लिए कोई उनके पैर नहीं छुएगा। दरअसल सुब्रत राय को पैर छुआने का बड़ा शौक। जिस अधिकारी ने जितने अच्छे ढंग से सुब्रत राय की चरण वंदना कर ली वह उतना ही बड़ा अधिकारी होता था।

कितने अधिकारी तो धरती पर पूरा लेटकर उनके पैर पकड़ लेते थे। यही वह आंदोलन था जिसमें आंदोलनकारियों ने नोएडा सहारा परिसर में टैंट गाड़ कर कह दिया था कि यदि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना नेतागिरी है तो आज से हम नेता हैं। यह आंदोलन एक महीने का वेतन देकर तुड़वाया गया था। यह वेतन भी रविवार के दिन आया था। हालांकि दो महीने के वेतन की जिद पकड़े मुकुल राजवंशी और उत्पल कौशिक को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। मतलब इस आंदोलन ने दो आंदोलनकारियों की बलि ले ली थी।

सहारा में क्रांति हो चुकी थी। उपेंद्र राय के वचन के अनुसार जब वेतन न मिला तो उपेंद्र राय के खिलाफ भी कर्मचारियों ने मोर्चा खोल दिया। यह आंदोलन चला गीता रावत और मोहित श्रीवास्तव की अगुआई में। इस आंदोलन में यूनियन के गठन की प्रक्रिया में तेजी आ गई थी। गीता रावत कानपुर से यूनियन का रजिस्ट्रेशन कराने में पूरी तरह से लग गई थी। सहारा मीडिया वर्कर्स यूनियन के नाम से यूनियन का गठन हो रहा था। गीता रावत अध्यक्ष और मोहित श्रीवास्तव को महामंत्री बनाया जा रहा था। आंदोलन को न झेल पाने के कारण उपेंद्र राय ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बताया जाता है कि उस समय उपेंद्र राय ने यह बोला था कि जब सहारा श्री उन्हें पैसे दे ही नहीं रहे हैं तो वह कहां से दे। उपेंद्र राय ने तब यह भी कहा था कि वह अपने घर से भी बहुत पैसे लगा चुके हैं।

उपेंद्र राय के बाद गौतम सरकार को मीडिया हेड बनाया गया। अब आंदोलन बड़ा रूप लेता जा रहा था। सहारा में यूनियन बनते देख सहारा प्रबंधन में हड़कंप था। बताया जाता है कि गौतम सरकार ने यूनियन को बनने से पहले ही तोड़ने के लिए रमेश अवस्थी को लगाया था। रमेश अवस्थी ने यूनियन में उपाध्यक्ष बनने जा रहे वाराणसी यूनिट के एसपी सिंह और मनोज श्रीवास्तव को तोड़कर यूनियन नहीं बनने दी। उसी समय सुब्रत राय का एक बड़ा कार्यक्रम दिल्ली में हुआ तो आंदोलनकारियों ने सुब्रत राय के घेराव की योजना बनाई।

हालांकि तत्कालीन ग्रुप एडिटर विजय राय ने आंदोलनकारियों को ऐसा न करने की बात कही। जब आंदोलनकारी नहीं माने तो उन्होंने इसका खामियाजा भी भुगतने की चेतावनी दी। आंदोलनकारी तीन बसों में भरकर सुब्रत राय को घेरने के लिए नोएडा से दिल्ली पहुंचे। दिल्ली में जब आंदोलनकारी बस से उतरे तो पुलिस ने आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर जंतर-मंतर लाकर छोड़ दिया तथा अपना आंदोलन वहां पर करने का कहा। बताया जाता है कि जंतर-मंतर पर एक आंदोलनकारी ने सुब्रत राय चोर का नारा लगा दिया।

ऐसा बताया जाता है कि इस नारे की वीडियो बनाकर राष्ट्रीय सहारा के तत्कालीन ब्यूरो चीफ कुणाल ने वीडियो बनाकर उच्च प्रबंधन को भेज दिया। उच्च प्रबंधन ने आंदोलनकारियों को सबक सिखाने के मकसद से यह वीडियो सुब्रत राय को भेज दी। बताया जाता है कि सुब्रत राय के निर्देश पर तब सहारा मीडिया से 22 कर्मचारी टर्मिनेट हुए थे। 22 कर्मचारियों के टर्मिनेट होने से आंदोलन गेट पर आ गया था। अब नोएडा के सहारा गेट पर आंदोलन चल रहा था। फिर से सहारा मीडिया का सारा काम ठप्प कर दिया गया था। यह आंदोलन तीन दिन चला। नौकरी जाने के डर से टर्मिनेट हुए कर्मचारियों को छोड़कर दूसरे कर्मचारी काम पर लौट गये। 

हालांकि काफी कर्मचारी ऐसे भी थे जो काम पर नहीं जा रहे थे, जिन्हें टर्मिनेट हुए आंदोलित कर्मचारियों ने समझाकर काम पर भेज दिया। तब टर्मिनेट हुए कर्मचारियों ने अपना बकाया वेतन गेट पर धरना देकर निकाल लिया था। सहारा ग्रुप में इस तरह से कर्मचारियों को टर्मिनेट करने की यह पहली घटना थी। उसके बाद राष्ट्रीय सहारा प्रिंटिंग डिवीजन से 27 कर्मचारी टर्मिनेट हुए।  इन कर्मचारियों ने भी सहारा गेट पर धरना दिया। इनके आंदोलन को चरण सिंह ने आकर सहयोग दिया। उस समय चरण सिंह प्रख्यात सोशल एक्टिविस्ट स्वामी अग्निवेश के बंधुआ मुक्ति मोर्चा में वैचारिक सलाहकार की हैसियत से साथ काम कर रहे थे। चरण सिंह और स्वामी अग्निवेश के आंदोलन में सक्रिय होने से प्रिंटिंग डिवीजन के इन साथियों का भी बकाया वेतन गेट पर बैठक निकल गया।

अब फिर से नोएडा सहारा मीडिया में आंदोलन की रूपरेखा बन रही है। गत दिनों सहारा टीवी के कर्मचारी धरने पर बैठ गये थे। बताया जा रहा है इस धरने में मुख्य भूमिका निभा रहे पांच कर्मचारियों को सहारा प्रबंधन ने टर्मिनेट कर दिया। लोकल निवेशक के गेट के अंदर बैठने और डिजीटल मीडिया के सुब्रत राय की हेकड़ी निकालने की खबर दिखाने के बाद उपेद्र राय को हटाकर सुमित राय को मीडिया हेड बना दिया गया। यह सहारा मीडिया का आंदोलन ही था कि आज निवेशक और एजेंट भी सहारा इंडिया के खिलाफ भुगतान को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। वह भी पूरे देश में। 9 नवम्बर को रीजनल कार्यालयों का घेराव किया गया है तो 15 नवम्बर को जोनल ऑफिस घेरे जाने हैं। अब देखना यह है कि सहारा प्रबंधन की मक्कारी जीतती है या फिर आंदोलनकारियों का हौसला।

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