Akbar’s rule : क्या था पेटीकोट शासन ?

शैलेन्द्र ठाकुर 

भारत में ” पेटीकोट शासन ” मुगल बादशाह अकबर के शासन काल से संबंधित है। यह 1560 से 1562 ई.के बीच के समय की दरबारी राजनीतिक स्थितियों के संदर्भ में बोला जाता है। दर असल जब हुमायूं की मृत्यु हुई और अकबर गद्दी पर बैठा तो अकबर की आयु मात्र तेरह वर्ष थी। इस परिस्थिति में हुमायूं का विश्वासपात्र बैरम खां जो कि अकबर का संरक्षक था उसे आरंभिक कठिनाइयों से उबरने में सहायता की।बैरम खां की प्रशासन में शक्ति बहुत बढ़ गई थी और उसने अकबर की चचेरी बहन से विवाह कर राजपरिवार से संबंध भी बना लिया। परन्तु 1560 आते आते अकबर सत्ता अपने हाथों में लेने के लिए व्यग्र हो उठा । अकबर की इस भावना को हरम की महिलाओं ने और प्रज्वलित कर दिया।

हरम की महिलाओं का नेतृत्व माहम अनगा कर रही थी जो अकबर की प्रधान धाय थी। बैरम खां को पद से हटा दिया गया जिससे उसने विद्रोह कर दिया । लेकिन शीघ्र ही पराजित होकर आत्म समर्पण कर दिया। उसके सामने अब कालपी व चन्देरी की सूबेदारी, बादशाह के सलाहकार या मक्का की यात्रा में से किसी एक को चुनने के लिए कहा गया जिस पर उसने मक्का जाने की इच्छा जताई। परन्तु जब वह मक्का की यात्रा पर था तो मार्ग में उसकी हत्या कर दी गई। बैरम खां के पतन के पश्चात् अकबर हरम की स्त्रियों के प्रभाव में आ गया और उनका प्रशासन में हस्तक्षेप बढ़ गया । इसी कारण इतिहासकारों ने इस काल (1560–1562ई.) को पेटीकोट गवर्नमेंट या पर्दा शासन कहा है । पर्दा शासन के दौरान माहम अनगा का सर्वाधिक प्रभाव था जबकि इस गुट के अन्य सदस्य थे- राजमाता हमीदा बानो बेगम,आधम खां (माहम अनगा का बेटा), अत्का खां (माहम अनगा का दामाद), पीर मोहम्मद (अकबर का शिक्षक) आदि ।पर्दा शासन बहुत दिनों तक नहीं चल पाया क्योंकि उसके सदस्यों ने शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया । वे कुचक्र रचने लगे व जनता तथा प्रशासन में अलोकप्रिय होने लगे ।

यह दिलचस्प है कि इस दौरान एक समय छः महीने में चार प्रधानमंत्री बदले गए।अधम खां के अत्याचार व शाही अवज्ञा बढ़ने लगे। उसने अपने कुछ सहयोगियों के साथ अत्का खां की हत्या कर दी और खुली तलवार लेकर अकबर के शयन कक्ष की ओर जाने का प्रयास किया परन्तु गिरफ्तार कर लिया गया। अकबर के आदेश पर उसके हाथ-पांव बांध दिया गया और छत से महल के नीचे फेंक दिया गया। जिन्दा रहने पर दोबारा फेंका गया जिससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद माहम अनगा अत्यधिक बीमार पड़ गई और शोक में अधम खां के मरने के चालीस दिन बाद मर गई।

उधर मुल्ला पीर मुहम्मद(मालवा का सूबेदार) के अत्याचार से जनता में विद्रोह की भावना पैदा होने लगी जिसका लाभ उठाकर बाज बहादुर ने मालवा पर आक्रमण कर दिया। पीर मुहम्मद हारकर भागा किन्तु नर्मदा नदी पार करते समय घोड़े से गिर गया और डूब कर उसकी मौत हो गई। मुल्ला पीर मुहम्मद पर्दा शासन का अन्तिम स्तम्भ था । इसकी मृत्यु के साथ ही पर्दा शासन का भी अंत हो गया।

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