Wednesday, May 8, 2024
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Dayanand Colony : एक कॉलोनी ऐसी भी जिसमें बिजली के तार और खंभे हैं पर कनेक्शन नहीं 

सी.एस. राजपूत 

कहने को तो केंद्र सरकार आदिवासी क्षेत्रों में भी बिजली की समस्या को दूर करने का दावा कर रही है पर वह बात अलग है कि दिल्ली एनसीआर में एक पुनर्वास कालोनी ऐसी भी है जिसमें रह रहे मजदूरों को बिजली तो छोड़िये बुनियादी सुविधाओं के लिए भी तरसना पड़ रहा है। इस कालोनी में न पेयजल की समुचित व्यवस्था है और न शौचालय की। जहां तक बिजली की बात है तो खंभे भी हैं, तार भी हैं पर कनेक्शन नहीं हैं। यदि मजदूर बिजली इस्तेमाल करते हैं उन पर एफआईआर दर्ज की दी जाती है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि ये मजदूर बिजली कनेक्शन मांग रहे पर इन्हें कनेक्शन नहीं दिये जा रहे हैं उल्टे इनके चालान काटे जा रहे हैं। जुर्माना लगाया रहा है। बात हो रही है फरीदाबाद 143 ए  सेक्टर की पुनर्वासित दयानंद कालोनी की। यह कालोनी ग्रीनफील्ड कॉलोनी से सटी है।



स्वामी अग्निवेश ने लड़ी बंधुआ मजदूरों की लड़ाई 

इस कालोनी का इतिहास बड़ा दिलचस्प है। 70-80 के दशक में दूर दराज से आये जो मजदूर अरावली पहाड़ियों की खदानों में मजदूरी करती थे। उनका न केवल शोषण होता था बल्कि उत्पीड़न भी जमकर किया जाता था। उस समय इन मजदूरों के पक्ष में खड़े हुए थे प्रख्यात सोशल एक्टिविस्ट स्वामी अग्निवेश। स्वामी अग्निवेश ने इन मजदूरों को बंधुआ मजदूर बताते हुए इनके पक्ष में बड़ी लड़ाई लड़ी।  मजदूरों का संगठन बनाकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया। 

जस्टिस पी.एन. भगवती के आदेश पर बसी थी दयानंद कॉलोनी 

बताया जाता है कि इस संघर्ष में कितने मजदूर दम भी तोड़ गये। कहा तो यहां तक जाता है कि आज के जाने माने नेता अवतार भड़ाना और करतार भड़ाना भी इन पत्थर खदानों से ही बने हैं। स्वामी अग्निवेश ने पहले तो एक यूनियन बनाई और बाद में बंधुआ मुक्ति मोर्चा संगठन बनाकर सुप्रीम कोर्ट तक इस लड़ाई को अंजाम दिया। लंबे संघर्ष के बाद जस्टिस पीएन भगवती ने छह एकड़ में जमीन में इन मजदूरों को पुनर्वास करने का आदेश दिया। 

स्वामी अग्निवेश के पोस्टकार्ड को माना गया था पीआईएल 

यह केस हरियाणा सरकार और बंधुआ मुक्ति के बीच में लड़ा गया था, जिसमें बंधुआ मुक्ति मोर्चा जीता था। देखने की बात यह भी है कि स्वामी अग्निवेश कहा करते थे कि जनहित में दायर की जाने  वाली पीआईएल इस केस से शुरू हुई थी। दरअसल स्वामी अग्निवेश ने एक पोस्टकार्ड पर इन मजदूरों की समस्याओं के बारे में लिखा था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पीआईएल माना था। 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किया गया था पुनर्वास 

इस कॉलोनी को बसाने के लिए लगभग 5 करोड़ रुपये सरकार से दिए गए होने की बात सामने आती है। तत्कालीन मेयर ने इस कालोनी के लिए बड़ा प्रयास किया था। इस कालोनी में 523  कमरे बनने थे, जबकि 365 कमरे ही बने। इन कमरों में से भी 97 कमरे अलाट नहीं हो पाये।, जिनको लेकर बड़ा विवाद चल रहा है। मजदूरों का आरोप है कि प्रभावशाली लोगों ने इन कमरों में से काफी कमरे किराये पर चढ़ा रखे हैं। कुछ कमरे मजदूरों ने खुद ही खोल लिये हैं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार इस कालोनी में अस्पताल, स्कूल और खेल का मैदान भी बनना था पर कुछ नहीं बना। शौचालय एक ही है जो गंदा रहता है। 

कॉलोनी में न स्कूल है और न ही अस्पताल 

कालोनी में रह रहे लगभग 1000 लोगों के लिए मात्र एक ही ट्यूबवेल ही है। स्कूल न होने की वजह से मजदूरों के बच्चे पढ़ भी नहीं पा रहे हैं। मजदूरों का आरोप है कि उनकी समस्याओं पर न तो जनप्रतिनिधि ध्यान देते हैं और न ही प्रशासन। कुल मिलाकर ये मजदूर नरकीय जिंदगी जीने का अभिशप्त हैं।

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