उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाने के बाद अब कानून मंत्री किरण रिजिजू ने सीजेआई को पत्र लिखकर उठाया कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल
सीएस राजपूत
पहले उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाये तो अब कानून मंत्री किरण रिजिजू ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा दिये हैं। उनका कहना है कि आंख मूंद कर नामों को अप्रूव नहीं किया जा सकता है। दरअसल उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने केशवानंद भारती मामले में जिस तरह अपनी अभिव्यक्ति पेश की थी वह प्रधान सेवक की तानशाही कायम करने की ओर बढ़ाने वाला एक कदम था। मतलब उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के पदेन सभापति जगदीप धनखड़ ने 1973 के केशवानंद भारती मामले में एक गलत परंपरा तो पैदा की ही है साथ ही अब अब केंद्र सरकार ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर कोलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाकर इस परंपरा को और आगे बढ़ा दिया।
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केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने सीजेआई को लिखे पत्र में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कॉलेजियम में सरकार का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए। टीओटी की रिपोर्ट में यह सब कुछ है। उनका तर्क है कि यह सब पारदर्शिता के लिए जरूरी है। कानून मंत्री ने इस पत्र में जजों की नियुक्ति वाले मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम से संतुष्ट न होने की बात कही है। यह माना जा रहा है कि किरण रिजिजू दोबारा कॉलेजियम की जगह नेशनल ज्यूडिशल अप्वाइंटमेंट्स कमीशन के पक्ष में हैं। उनका कहना है कि जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका का अपना महत्व होता है। उनका तर्क है कि जजों के पास तमाम रिपोर्ट्स और जरूरी सूचनाएं नहीं होती हैं जो सरकार के पास है।
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आंख मूंदकर अप्रूव नहीं कर सकते हैं नाम
रिजिजू कह चुके हैं कि सरकार को सिर्फ इसलिए कटघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता है क्योंकि सरकार ने कॉलेजियम द्वारा सुझाए गये नामों को मंजूरी नहीं दी। उनका कहना है कि सरकार आंख मूंदकर कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को अप्रूव नहीं कर सकती है।
उधर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस अभय एस. ओका की बेंच ने कहा है कि यदि सरकार को कॉलेजियम एवं द्वारा सुझाए गए किसी नाम पर आपत्ति है तो उसको बताना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नजरिया पेश किया है कि इस तरह से नामों को रोकने का सरकार का तरीका ठीक नहीं है। देखने की बात यह भी है कि हाल ही में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था सौ फीसदी परफेक्ट नहीं होती है और जजों की नियुक्ति के लिए बना कॉलेजियम सिस्टम भी इससे परे नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम में हैं पांच जज
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सुप्रीम का जो कॉलेजियम सिस्टम है उसमें सीजेआई की अगुआई में पांच सीनियर जज हैं। सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अजय रस्तोगी मौजूदा कोलेजियम सिस्टम में हैं। यह भी जमीनी हकीकत है कि जस्टिस चंद्रचूड़ के बाद अगला चीफ जस्टिस बनने की कतार में इन पांचों जजों में से कोई नहीं है।
बैक डोर से एनजेएसी की वापसी चाहती है केंद्र सरकार!
दरअसल कानून मंत्री किरण रिजिजू ने सीजेआई को ऐसे वक्त पत्र लिखा है जब जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच रस्साकशी चल रही है। इस विवाद में न्यायपालिका यह मानकर चल रही है कि सरकार एक बार फिर से जजों की नियुक्ति में बैक डोर से अपना दखल चाहती है, जैसा कॉलेजियम से पहले नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन में था।
क्यों खत्म हुआ था एनजेएसी
नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन एक्ट को पार्लियामेंट ने पास किया था। एनजेएसी के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होते थे। इसमें दो सीनियर जजों के अलावा कानून मंत्री और दो और महत्वपूर्ण शख्सियतों को शामिल किया जाता था। उनका चुनाव पीएम की अगुआई वाला पैनल करता था, जिसमें विपक्ष के नेता और खुद सीजेआई भी शामिल होते थे। हालांकि अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने एनजेएसी को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।