Sunday, April 28, 2024
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Lohia Thoughts : हर प्रकार के भेदभाव को समस्या पैदा करना मानते थे लोहिया 

नीरज कुमार 

लोहिया के अनुसार हर प्रकार का भेदभाव, विशेषतः जाति व लिंग संबंधी असमानता, एक विशेष प्रकार की समस्या पैदा करता है जो भेदभाव के मूल कारणों के विषय में सरल या सपाट नहीं होती, बल्कि अत्यंत जटिल आयाम लिए हुए होती है। इस जटिलता के चलते असमानता के मूल कारणों का लाक्षणिक अथवा सांगठनिक प्रक्रियाओं के जरिए निवारण नहीं किया जा सकता। वे लिखते हैं, “समानता मन की एक स्थिति है”, यह हमेशा नियम अथवा तर्क के दायरे में ही पारिभाषित नहीं होती। भेदभाव और दरकिनार करने की प्रवृति “दूसरे को गैर-कानूनी और अनैतिक तरीकों से दबाकर स्वयं को आगे बढ़ाने की इच्छा का जीवंत उदाहरण हैं।” असमानता 

“जीवन के साथ इतनी घनिष्ठता से रची-बसी है की वह उसका आधार ही बन गयी है। कितनों को तो उसके बारे में कोई ज्ञान नहीं होता और तब उनको यह ज्ञात होता है तो वह अचंभित होते हैं और उसको नकारने भी लगते हैं।” “एकाधिकार की शक्तियों के भोग” की प्रवृति मानव जाति   के हर स्तर पर और हर स्थिति व परिपेक्ष्य में पाई जाती है। वे लिखते है कि चेतना और मन के कुछ हिस्से अँधेरे में ही पड़े रहते हैं, चाहें उनके जागृत होने की कितनी भी बातें की जायें। जाति  व लिंग की असामनताएं उनके हिसाब से अनेक असमानताओं का एक आयाम हैं, जिसका डटकर विरोध होना चाहिए। अपने काल की “सात क्रांतियों” के बारे में बात करते हुए वे असमानताओं के पांच आयामों का जिक्र करते हैं। 

उल्लेखनीय है कि वे इन पाँचों में किसी एक को दूसरे से अधिक महत्वपूर्ण नहीं मानते, न ही उनमें से किसी को दूसरे में घटित करने को तैयार होते हैं। लोहिया नहीं मानते कि असमानता की बुराई का कोई अंतिम समाधान हो सकता है। वे मानते हैं कि लिंगभेद सहित विभिन्न स्तरों पर असमानता के बदलते और अदृश्य रूपों के विरोध का संघर्ष एक निरंतर प्रक्रिया है। “असमानता के विरुद्ध लड़ाई लम्बे समय तक जारी रहेगी, संभवतः हमेशा के लिए।” यह कहकर लोहिया इस ओर इशारा करते हैं कि किसी विचारधारा की सफलता या असफलता तात्कालिक नतीजों से नहीं तय होती। असमानता से जूझने के लिए अनवरत जागरूकता की आवश्यकता होती है, जिसके द्वारा प्रभुता-सम्पन्न समाजों द्वारा “दमन और भेदभाव” की नीतियों के तरीकों को समझा जा सके।

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