Tuesday, May 28, 2024
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Sahara Protest : सुब्रत राय की ईगो के चलते बिगड़ा था सहारा सेबी का मामला 

विज्ञापनों के माध्यम से सेबी को गलत ठहराने में लगा था सहारा 


सी.एस. राजपूत 

सहारा निवेशकों और एजेंटों का पैसा न मिलने का बड़ा कारण सुब्रत राय की नीयत की खराबी तो है है साथ ही सहारा इंडिया के सेबी से मामला बिगड़ने से भी मामला काफी बिगड़ा है।  दरअसल शुरू में सहारा के चैयरमेन ने सेबी को हल्के में लिया था और सेबी को गलत ठहराने के लिए लगभग सभी बड़े अखबारों में विज्ञापन छपवाया था। दरअसल सहारा इंडिया का विज्ञापन जारी करने का बड़ा खेल रहा है। जगजाहिर है कि सहारा इंडिया कंपनी लोगों के साथ पैसों की धोखाधड़ी के आरोप झेल रही है। सहारा का सेबी से मामला जब बिगड़ा जब उसके उच्च प्रबंधन ने अखबारों में विज्ञापन देकर सफाई दी कि सभी लोगों के पैसे लौटाए जाएंगे, वह भी ब्याज समेत। पर सेबी रोड़ा बन रहा है। तब सहारा ने SEBI यानि कि सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया पर निशाना साधते हुए कहा था कि SEBI ने पिछले एक साल में पैसे लौटाने का विज्ञापन नहीं दिया है। 

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को लोगों का फंसा हुआ लौटाने का आदेश दे रखा है। सहारा पर 20 हजार करोड़ रुपये का बकाया बताया जा रहा है। जब से सहारा का केस शुरू हुआ है, वह लगातार विज्ञापनों के जरिए सफाई देता रहा है। साथ ही सरकारी जांच एजेंसियों पर हमलावर हैं आइए, जानते हैं क्या है सहारा की पूरी कहानी.

विज्ञापन में क्या कहा था सहारा ने 

विभिन्न अख़बारों में छपे अख़बारों में दिए विज्ञापन के जरिये सहारा ने कहा था कि 7 साल से कुछ वजहों से पैसे वापस करने में देरी हो रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से पैसे खाते में जमा हो रहे हैं, लेकिन भुगतान नहीं हो पा रहा है। सहारा ने दावा किया था कि सहारा के पास बकाए से तीन गुना ज्यादा संपत्ति है। हमारे पास हजारों एकड़ जमीन है, लेकिन रियल एस्टेट में मंदी की वजह से जमीन बेच नहीं पा रहे हैं। सहारा का कहना था कि जल्द ही विदेशी निवेश होने वाला है। सहारा-SEBI के खाते में 22,000 करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं। इसमें ब्याज की रकम ही शामिल है। तब सहारा का कहना था कि SEBI ने चार बार विज्ञापन दिए पर मात्र 106.10 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया है। 

क्या है सेबी ?सेबी (SEBI): पूरा नाम सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया है।  हिंदी में प्रतिभूति तथा विनिमय बोर्ड कहते हैं। सेबी का काम- शेयर मार्केट में गड़बड़ियों को रोकना, कंपनियों से नियमों का पालन कराना और निवेशकों (पैसा लगाने वालों) के हितों का खयाल रखना है। 

सहारा के एक्सपोज होने के पीछे आईपीओ लाना बड़ा कारण माना जाता है। दरअसल आईपीओ (IPO or Initial Public Offering) प्रक्रिया के जरिए कोई कंपनी पहली बार पैसा जुटाने के लिए अपनी कुछ हिस्सेदारी जनता को बेचती है। इसके जरिए कोई निजी कंपनी सार्वजनिक कंपनी बन जाती है। 

डीआरएचपी (DRHP or Draft Red Herring Prospectus): यह एक बायोडाटा होता है।  इसमें शेयर मार्केट से पैसा उठाने वाली कंपनी की पूरी जानकारी होती है, जैसे- कंपनी का नाम, पता, कितने पैसे है, वह क्या काम करती है। 
ओएफसीडी जनता से पैसे उधार लेने का एक तरीका है, जिसमें बदले में ब्याज चुकाया जाता है।  साथ ही इसके जरिए निवेशक कंपनी के हिस्सेदार भी बन सकते हैं। OFCD के कुछ नियम भी हैं। अगर 50 से कम लोगों को OFCD जारी होता है तो कंपनी रजिस्ट्रार से अनुमति लेनी होती है।  50 से ज्यादा लोगों को OFCD देने के लिए सेबी से पूछना पड़ता है। 

क्या है सहारा और सेबी का मामला 

दरअसल 2009 में सहारा ग्रुप की एक कंपनी के शेयर मार्केट में जाने की इच्छा से मामला शुरू हुआ था और शेयर मार्केट में जाने से पहले SEBI से अनुमति लेना होता है। ऐसे में सितंबर 2019 में सहारा प्राइम सिटी नाम की कंपनी ने SEBI को IPO लाने के लिए डीआरएचपी भेजा था। यानी कि मार्केट से पैसा उगाहने के लिए अपना बायोडाटा भेजा था। सेबी कंपनी का बायोडाटा जांच रही थी कि इसी दौरान सहारा की दो कंपनियां- सहारा इंडिया रियल इस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SIRECL)और सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SHICL) कटघरे में आ गईं। SEBI को लगा कि इन्होंने गलत तरीके से जनता से पैसे उगाहे हैं। 
यह सब चल ही रहा था कि तभी SEBI को इन कंपनियों के बारे में एक शिकायत मिली। इसमें कहा गया कि ये कंपनियां गलत तरीके से OFCD जारी कर रही हैं। 
 

 SEBI की जांच में खुली पोल

सेबी ने जांच शुरू की तो सामने आया कि SIRECL और SHICL ने 2-2.5 करोड़ लोगों से 24,000 करोड़ रुपये इकट्ठे किए हैं। 2 साल तक यह सिलसिला चलता रहा। सहारा ने इसके लिए सेबी से अनुमति नहीं ली। सेबी के तत्कालीन बोर्ड मेंबर डॉ. केएम अब्राहम ने पूरी जांच की तो उन्हें पता चला कि सहारा के कई निवेशक फर्जी थे और बाकियों का कंपनी से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं था। आसान भाषा में कहें, तो सहारा ने इन दो कंपनियों के जरिए लोगों से पैसे लिए थे। साथ ही कहा कि वह इस पैसे से देश के अलग-अलग शहरों में टाउनशिप बनाएगा लेकिन सहारा ने न तो टाउनशिप बनाई और न ही लोगों के पैसे वापस किए। 

15 प्रतिशत ब्याज के साथ पैसे लौटाने का आदेश

गड़बड़ी सामने आते ही सेबी ने सहारा के नए OFCD जारी करने पर रोक लगा दी थी और लोगों के पैसे 15 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया था। सहारा प्रबंधन इस आदेश पर भड़क गया था। वह इलाहाबाद हाईकोर्ट चला गया और सेबी पर केस कर दिया। दिसंबर, 2010 में कोर्ट ने सेबी के आदेश पर रोक लगा दी, लेकिन 4 महीने बाद सेबी को सही पाया और सहारा को भुगतान करने को कहा गया। 

सहारा फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चला गया, यहां से उसे सिक्युरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल जाने को कहा गया। यह ट्रिब्यूनल कंपनियों के मामलों को सुलझाती है, यहां भी सहारा को राहत नहीं मिली और सेबी के आदेश को सही करार दिया। सहारा ने यहां भी गलती नहीं मानी। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। 

SEBI से पहले RBI से टकराव

सेबी से पहले सहारा का रिजर्व बैंक (RBI) से भी टकराव चल रहा था। RBI ने 2007-08 में सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉरपोरेशन के पैसे जमा कराने पर रोक लगा दी थी। देश की दो बड़ी एजेंसियों से टकराव के बाद भी सहारा पीछे नहीं हटा। जून, 2011 में सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉरपोरेशन ने अखबारों में एक विज्ञापन दिया कि उसके पास कुल जमा का मूल्य 73,000 करोड़ रुपये है। 

सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉरपोरेशन के इस विज्ञापन ने तो तहलका ही मचा दिया। यह घोषणा ऐसे समय की गई थी कि जब रिजर्व बैंक और प्रतिभूति तथा विनिमय बोर्ड (SEBI) के साथ टकराव चल रहा था। दोनों सहारा कंपनियों द्वारा डिपॉजिट जमा करने पर अंकुश लगाना चाह रहे थे, रिजर्व बैंक ने विज्ञापन भी छपवा दिए थे कि वह सहारा कंपनियों में जमा होने वाली रकम के भुगतान की गारंटी नहीं देगा। SEBI ने भी यही रुख अपनाया। 

इधर, सुप्रीम कोर्ट ने भी सेबी के रुख का समर्थन किया। सहारा से कहा कि उसकी दो कंपनियों ने लाखों छोटे निवेशकों से ओएफसीडी (वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर्स) के जरिए करीब 24,000 करोड़ रु. की जो रकम जमा की है, उसे लौटा दिया जाए। 
 कोर्ट के आदेश के बाद सहारा ने निवेशकों के कागजों से भरे 127 ट्रक सेबी के दफ्तर भेज दिए, इसके बाद सहारा और सेबी के बीच तनातनी बढ़ती ही गई। पैसा वापस करने का तीन महीने का समय गुजर गया। सहारा पैसा नहीं दे पाया और सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए तीन किस्तों में पैसे लौटाने को कहा। 

सहारा ने पहली किश्त में 5210 करोड़ रुपये सेबी के खाते में जमा करा दिए। साथ ही कहा कि बाकी पैसा सीधे निवेशकों के खाते में डाल दिया, लेकिन सहारा न तो पैसे लौटाने के सबूत दे पाया और न ही पैसे आने का सोर्स बता पाया। सहारा के इस रुख पर सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के बैंक खाते सीज करने और संपत्ति सील करने को कहा। फरवरी, 2014 में सुब्रत रॉय को  लखनऊ स्थित उनके आवास से गिरफ्तार कर लिया गया,  लेकिन मई 2016 के बाद से वह पैरोल पर जेल से बाहर चल रहे हैं। निवेशकों के पैसे अभी भी अटके हुए हैं। सहारा यह विज्ञापन दे रहा है कि पैसे सहारा-सेबी के खाते में हैं। वह कहां से दे। सेबी को निवेशकों के पैसे देने चाहिए। कुल मिलाकर निवेशक और एजेंट मारे मारे फिर रहे हैं और सुब्रत राय हैं कि चैन की बंसी बजा रहे हैं। 
   

कौन हैं सुब्रत रॉय

 मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं। उन्होंने 1978 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से 2,000 रुपये की रकम लगाकर कारोबार शुरू किया था। उन्होंने लोगों से पैसा जमा करने की एक स्कीम से शुरुआत की थी। इस पर 1979-80 में पाबंदी लग गई थी और तुरंत पैसा वापस करना पड़ा था।  फिर उन्होंने हाउसिंग फाइनेंस कंपनी शुरू की, जिसके लिए बाजार से पैसा उगाहने की कोई सीमा नहीं थी। उनका यह काम चल निकला और बढ़ते-बढ़ते सहारा देश की टॉप की कंपनियों में शामिल हो गई। एक समय सहारा की कंपनियों में इंडियन रेलवे के बाद सबसे ज्यादा कर्मचारी बताये जाते थे। 2013 में टाइम मैगजीन ने सहारा को भारतीय रेलवे के बाद दूसरी सबसे ज्यादा नौकरी देने वाली संस्था बताया था। इंडिया टुडे ने उनका नाम देश के 10 सबसे ताकतवर लोगों में शामिल किया था। 

देश प्रेमी होने का दिखावा करते हैं सुब्रत रॉय

सुब्रत रॉय अक्सर देश प्रेम की बात कहते रहे हैं।  भारतीय क्रिकेट टीम का स्पॉन्सर बनने के लिए भी उन्होंने देश प्रेम को आधार बनाया था। बताया जाता है कि बीसीसीआई को एक विदेशी कंपनी से स्पॉन्सरशिप मिल गई थी, लेकिन सुब्रत रॉय ने बीसीसीआई के उस समय के प्रेसिडेंट जगमोहन डालमिया को फोन किया। देशप्रेम की दुहाई दी और 10 प्रतिशत ज्यादा रकम का ऑफर देते हुए स्पॉन्सरशिप ले ली। कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले उन्होंने विज्ञापन दिया। उन्होंने देश की इज्जत का हवाला देकर इन खेलों में घोटाले की जांच टालने की अपील की। सुब्रत राय ने सहारा में भारत माता की तस्वीर पर दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की परंपरा बनाई है। सहारा ने केवल हॉकी बल्कि कुश्ती, बॉक्सिंग और दूसरे खेलों को प्रायोजक भी रहा है। 

सहारा का लंबा-चौड़ा कारोबार

सहारा का बिजनेस फाइनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर एंड हाउसिंग, मीडिया एंड एंटरटेनमेंट, कंज्यूमर रिटेल वेंचर, मैन्युफैक्चरिंग और आईटी सेक्टर में फैला हुआ था. सहारा ने अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में 4400 करोड़ रुपए में दो होटल भी खरीदे। खरीदे गए दोनों ही होटल न्यूयॉर्क प्लाजा और ड्रीम न्यूयॉर्क दुनिया के नामी होटलों में शामिल हैं। सहाराश्री के पास मुंबई के एंबी वैली में 313 एकड़ जमीन का डेवलपमेंट राइट, मुंबई के वर्सोवा में 106 एकड़ की जमीन, लखनऊ में 191 एकड़ जमीन, देश के 10 अलग-अलग शहरों में 764 एकड़ जमीन है।

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