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Demonetisation : 17 महीने पहले नये नोटों पर हो गए थे भावी गवर्नर के हस्ताक्षर!

19 महीने पहले छपने लगे थे नये नोट, गवर्नर थे रघुराम राजन पर हस्ताक्षर हो रहे थे उर्जित पटेल के

सीएस राजपूत 

सोशल मीडिया में ऐसी खबरें तैर रही हैं कि नोटबंदी के 19 महीने पहले 500 और 2000 के नये नोट छपने शुरू हो गये थे। इन नोटों पर तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन के बजाय भावी गवर्नर उर्जित पटेल के हस्ताक्षर कराये जा रहे थे। मतलब भारतीय करेंसी पर उस व्यक्ति के हस्ताक्षर मोदी सरकार में कराये गये जो गवर्नर था ही नहीं।  इस बात का हवाला, बोलता हिन्दुस्तान, जंजवार, ऑनलाइन न्यू इंडिया और पूर्व आईपीएस अधिकारी विजय शंकर सिंह ने भी दिया है।


बताया जा रहा है तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन नोटबंदी के पक्ष में नहीं थे और उर्जित पटेल ने भी गवर्नर बनने के कुछ ही दिन बाद निजी कारणों से अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार की मनमानी के चलते उर्जित पटेल और सरकार के बीच ठन गई थी और उर्जित पटेल ने नाराज होकर इस्तीफा दे दिया था। जाहिर सी बात है कि भले ही पूरे देश की जनता नोटबंदी में सड़कों पर आ गई हो, कितने लोगों ने बीमारी के इलाज के लिए पैसे मिलने पर दम तोड़ दिया हो, कितनी बेटियों की शादियां रुक गई हो कितने बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई हो पर इस नोटबंदी के चलते प्रधानमंत्री के चहेते पूंजीपतियों की चांदी तो खूब कटी है। जब 19  महीने पहले नये नोट छपने शुरू हो गये थे तो स्वाभाविक है कि मोदी ने अपने करीबी पूंजीपतियों को नोटबंदी होने और पुराने नोटों को ठिकाने लगाने को बोल ही दिया गया होगा। अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने बड़े स्तर पर काले धन को सफेद धन में बदला गया होगा। मतलब गरीबी का भुना रहे प्रधानमंत्री ने गरीबों को तो सड़क पर ला दिया पर पूंजीपतियों की बल्ले-बल्ले करा दी। देश में नोटबंदी की गई वह भी तत्कालीन गर्वनर के न चाहते हुए। खुद तत्कालीन गर्वनर रघुराम राजन ने कहा है कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा है।


देखने की बात यह है कि जो मीडिया जरा-जरा सी बातों को तूल दे देता है वह मीडिया नोटबंदी पर इतने बड़े खेल पर चुप्पी साधे बैठा है। मतलब प्रधानमंत्री जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करते रहे मनमानी कर लोगों को दिक्कतों में धकेलते रहे पर सरकार का भोंपू मीडिया प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ता रहा। यही रवैया मीडिया का कोरोना महामारी में भी रहा। लोगों को गलत दवा देकर मारा जाता रहा और मीडिया पीएम मोदी के देश को बचाने की खबरें चलाता रहा।


आक्सीजन के सिलेंडरों के नाम पर देश में खूब धंधा चला पर मीडिया को कहीं पर कोई गलती नजर ही नहीं आई। मीडिया तो तब्लीगी जमात के पीछे पड़ा हुआ था कि जैसे देश में तब्लीगी जमात ने ही कोरोना फैला दिया हो, वह बात दूसरी है कि तब्लीगी जमात के लोगों पर तमाम मामले दर्ज होने के बावजूद वे लोग बाइज्जत बरी हुए। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में तो गांवों में भी काफी लोगों ने दम तोड़ा तब मीडिया ने नहीं बताया कि कोरोना किन लोगों की वजह से फैला। ऐसे ही हाल ही में गुजरात में मोरबी पुल हादसे में हुआ। 135  लोगों के मरने बावजूद पुल बनाने वाली कंपनी के मालिक का कुछ नहीं बिगड़ा। कंपनी के मैनेजर को गिरफ्तार कर मामले को रफा-दफा करने की ओर बढ़ा दिया गया। देखिये धुरंधर पत्रकारों को, जी न्यूज में अब मोदी भक्ति न होने देने पर आज तक में पहुंचे सुधीर चौधरी ने पुल टूटने का जिम्मेदार लोगों को ही ठहरा दिया। मतलब पीएम मोदी सही साबित करने के लिए गोदी मीडिया कुछ भी करने को तैयार है। देश भले ही बेतहाशा बढ़ी बेरोजगारी, महंगाई से जूझ रहा हो पर देश का मीडिया दुनिया में मोदी के डंका बजने की खबरें चलाता रहता है।


देश आर्थिक रूप से खोखला होता जा रहा है और मीडिया ऐसा दिखा रहा है कि जैसे देश मोदी के नेतृत्व में विश्व गुरु बनने जा रहा हो। देखने की बात यह है कि पीएम मोदी ने राष्ट्रीय मीडिया तो पंगु बना दिया है पर द वायर, द प्रिंट, जनसत्ता डॉट कॉम. जनचौक, जंजवार, ऑनलाइन न्यूज इंडिया जैसे कुछ वेब पोर्टल और यूट्यूब चैनल मोदी के कब्जे में नहीं पा आ रहे हैं। यही वजह है कि सरकार देशविरोधी कंटेंट के नाम पर ऐसे वेब पोर्टलों और यू ट्यूब चैनलों पर अंकुश लगाने की रणनीति बना रही है।

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