Friday, April 26, 2024
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Sahara Protest : सुब्रत रॉय ने पैरोल पर छूटते ही मैरिज ऐनिवर्सरी में बहा दिए थे करोड़ो रुपए 

कर्मचारियों को नहीं मिल रहा था वेतन पर प्रबंधन और मालिकान के खर्चे में नहीं थी कोई कमी 

सी.एस. राजपूत  

जो निवेशक और जमाकर्ता सहारा के मुखिया सुब्रत रॉय के अंधभक्त थे, वे ऐसे ही उनके खिलाफ ऐसे ही खड़े नहीं हुए हैं। यह सुब्रत रॉय की कारस्तानी ही रही है कि उन पर जान छिड़कने वालों ने ही उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दरअसल ये निवेशक और जमाकर्ता लोगों से पाई-पाई इकठ्ठा कर कर सुब्रत रॉय को लाकर देते रहे और सुब्रत रॉय हैं कि उनकी भावनाओं की कद्र न करते हुए उस पैसे को अय्याशी करने और नेताओं से संबंध बनाने में उड़ाते रहे। यह सुब्रत रॉय की मक्कारी ही थी कि 2014 में जब सेबी-सहारा विवाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करने पर सुब्रत रॉय को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया था। जेल में जाने के बाद भी उनके रवैया नहीं बदला था। जेल जाते ही उन्होंने कर्मचारियों को वेतन देना बंद करवा दिया था। 

हां जब दो साल बाद सुब्रत रॉय अपनी मां के निधन पर पैरोल पर जेल से छूटे तो अपनी मां का अंतिम संस्कार करने के बाद जनवरी में उन्होंने दिल्ली के मौर्य होटल में भव्य कार्यक्रम आयोजित कर अपनी शादी की वर्षगांठ मनाई। यह वह दौर था जब कर्मचारियों को कई महीने से वेतन नहीं मिल रहा था पर इस कार्यक्रम में करोड़ों रुपए बहा दिए थे।  इतना ही नहीं उन्हीं दिनों लखनऊ में अपनी पुस्तक ‘थिंक विद मी’ के विमोचन पर भी उन्होंने करोड़ों रुपए खर्च किए थे। देखने की बात यह भी है कि सुब्रत रॉय ने देशभक्ति का ठखोसला करते हुए अखबारों में विज्ञापन छपवाया था कि देश को आदर्श बनाओ, भारत को महान बनाओ।  मतलब देश को महान बनाने का ठेका लेने वाले सुब्रत राय जिंदगी भर अपने ही कर्मचारियों, निवेशकों और जमाकर्ताओं को ठगते रहे। मतलब गरीब जनता को ठगेंगे। कर्मचारियों का शोषण और उत्पीड़न करेंगे पर देशभक्ति का ढखोसला कर अपने देशभक्त होना दिखाएंगे। यह व्यक्ति कितना बड़ा नौटंकीबाज है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यदि आप सहारा के कार्यालयों में जाएंगे तो आपको वहां पर भारत माता की तस्वीर दिखाई दे जाएगी और सहारा के हर कार्यक्रम से पहले भारत माता की तस्वीर पर दीप प्रज्ज्वलित किया जाएगा। 

दिखावे के लिए सहारा में गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस को भारत पर्व के रूप में मनाया जाता है। तिरंगे का इस्तेमाल ऐसे किया जाता है कि जैसे इनसे बड़ा देशभक्त कोई दूसरा हिन्दुस्तान में नहीं है। देशभक्तों को लूटकर देशभक्ति का जो दिखावा सुब्रत रॉय करते रहे हैं।  यही वजह रही है कि निवेशक और जमाकर्ता इनके झांसे में आ गए। 

ऐसे में सहारा के खिलाफ चल रहे आंदोलन ने सुब्रत रॉय के चेहरे को बेनकाब कर दिया है। सुब्रत रॉय ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिजनों की आर्थिक मदद करने के नाम पर तो अपने कर्मचारियों से अरबों ठग ही लिए साथ ही जेल से छुड़ाने के नाम पर भी साढ़े 12 सौ करोड़ रुपए इन कर्मचारियों, जमाकर्ताओं से ठग लिए गए। मतलब यह व्यक्ति जिंदगीभर देश और समाज दोनों को बेवकूफ बनाता रहा है। सेबी और सुप्रीम कोर्ट को भी बनाने चला था कि आ गया उनके शिकंजे में। अपनी मां के निधन पर पैरोल पर जेल से छुटकर यह व्यक्ति 6 साल से कर्मचारियों में आतंक का माहौल बना रहा है।

जमीनी हकीकत तो यह है कि सुब्रत रॉय ने जिन कर्मचारियों, निवेशकों और जमाकर्ताओं के बल पर 2000 रुपए से दो लाख करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति अर्जित कर ली, सुब्रत रॉय उन्हीं कर्मचारियों, निवेशकों और जमाकर्ताओं को बर्बाद करने में लगे हैं। कर्मचारियों को सच बोलने की शिक्षा देने वाला यह व्यक्ति सच्चाई बर्दाश्त नहीं कर पाता है। जो जितना झूठ बोलता हो, चाटुकारिता करता हो। निर्लज्ज और बेशर्म हो। सुब्रत रॉय उस व्यक्ति को उतना ही पसंद करता है। स्वाभिमानी, खुद्दार और ईमानदार व्यक्ति तो जैसे इसका सबसे बड़ा दुश्मन हो। प्रवचन ऐसे देता है कि बाबा आसाराम और रामपाल भी शर्मा  जाएं। कितना निरंकुश और तानाशाह है यह व्यक्ति। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब मीडिया में सहारा में चल रही अराजकता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था तो इस व्यक्ति का रिएक्ट ऐसा था कि जैसे इसके सीने पर पैर ही रख दिया गया हो। 

इस व्यक्ति ने आंदोलन की अगुआई कर रहे कर्मचारियों को जेल में बुलाकर धमकाना चाहा था पर उन आंदोलनकारियों कर्मचारियों की दाद देनी पड़ेगी कि उन्होंने सुब्रत रॉय को हर बात का मुंहतोड़ जवाब दिया। यह भी जमीनी सच्चाई है कि यदि देशभक्ति का ढखोसला करने वाली संस्था सहारा पर सीबीआई जांच बैठ जाए तो यहां पर देश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला मिलेगा। 

दरअसल सहारा वह संस्था है, जिसके मालिकान और अधिकारी तो अय्याशी करते हैं पर कर्मचारियों, निवेशकों और जमाकर्ताओं को पैसे के लिए तरसाया जाता है। आज जहां सहारा के खिलाफ उसके ही निवेशक और जमाकर्ता सड़कों पर उतरे हुए हैं वहीं कर्मचारियों का कई  साल का बकाया भुगतान सहारा पर है। जिन कर्मचारियों का रिटायरमेंट हो रहा है उन्हें भी पैसा नहीं दिया जा रहा है। 

हमेशा कोर्ट के सम्मान की बात करने वाला सुब्रत रॉय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रिंट मीडिया को मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से वेतन देने को तैयार नहीं। जिंदगी के महत्वपूर्ण 20-25 साल संस्था को देने वाले कर्मचारी अब सुब्रत रॉय को बोझ लग रहे हैं। किसी को तबादले के नाम पर तो किसी को बर्खास्त करने के नाम पर और किसी को दूसरे तरीके अपनाकर परेशान किया जा रहा है।

बात 2016 की है कि प्रबंधन के दमनचक्र के आगे नोएडा प्रोसेस विभाग में काम करने वाले बी.एम. यादव दम तोड़ दिया था। उस समय बताया गया था कि एचआर विभाग ने उसे बुलाकर कुछ ऐसा बोल दिया था कि वह डिप्रेशन में चला गया था। गंभीर हालत होने पर जब उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उसका निधन हो गया था। सहारा कर्मियों को कितनी कितनी जलालत झेलनी पड़ रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब अस्पताल से बी.एम. यादव के शव को घर लाया गया तो मकान मालिक ने शव को घर न लाने दिया। आनन-फानन में किसी तरह से उसका अंतिम संस्कार किया गया। उसी दौर में विज्ञापन विभाग के जेपी तिवारी का भी निधन आर्थिक तंगी के चलते हो गया था। उसी समय सेलरी ने मिलने पर  सर्विस डिजीवन में काम कर रहे एक युवा ने इसलिए आत्महत्या कर ली थी कि क्योंकि किराया न देने पर उसके मकान मालिक ने उसके बच्चों के सामने ही उसे बहुत जलील कर दिया था। उन दिनों ही लखनऊ में एक कर्मचारी ने छत से गिरकर इसलिए आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि लंबे समय से उसे वेतन न मिलने के कारण परिवार में रोज बेइज्जत होना पड़ता था।

सहारा टीवी में काम कर रहे एक कर्मचारी की मौत भी इसलिए हो गई क्योंकि लंबे समय तक सेलरी न मिलने पर बीमारी की स्थिति में भी वह कई दिनों तक ब्रेड खाकर काम चलाता रहा था। यह हाल है देशभक्ति का ठकोसला करने वाले सुब्रत रॉय के सहारा समूह का। इनके खर्चे ऐसे कि राजा-महाराजा भी शर्मा जाएं।  


अय्याशी और विज्ञापनों पर करोड़ों खर्च करने वाले सहारा प्रबंधन के पास कर्मचारियों, निवेशकों और जमाकर्ताओं को पैसा देने के लिए नहीं पैसे हैं। सहारा मालिकान और अधिकारियों के किसी खर्चे में कोई कमी नहीं है। जमकर अय्याशी हो रही है पर पीड़ित कर्मचारियों, निवेशकों और जमाकर्ताओं के लिए पैसा नहीं है। ऐसा नहीं है कि अंदर काम कर रहे कर्मचारी बहुत खुश हों। उनका भी कई कई साल का बकाया वेतन संस्था ने नहीं दिया है। स्थानांतरण के नाम पर इन्हें भी डराया हुआ है। सहारा पर निवेशकों और जमाकर्ताओं का दो लाख करोड़ से ऊपर का बकाया है। 

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