Sunday, December 8, 2024
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Hamas-Israel War : तूल देकर देश में बिगाड़ा जा रहा माहौल! 

 पीएम मोदी को विदेशी महिलाओं के साथ होने वाली दरिंदगी तो दिखाई दे जाती है पर देश की  महिलाओं के साथ होने वाली दरिंदगी पर वह चुप्पी साध लेते हैं  

 इजरायल की तरह ही यूक्रेन के पक्ष में क्यों नहीं खड़े हुए मोदी ?

गांधी, लोहिया, वाजपेयी भी इजरायल द्वारा कब्जाई गई जमीन का जता चुके हैं विरोध 

पीएम मोदी इजरायल के पक्ष में हैं तो देश में कई जगहों पर शुरू हो चुका है फिलिस्तीन के पक्ष में आंदोलन  

चरण सिंह राजपूत 

जिन पीएम मोदी ने अपने सांसद पर अंतर्राष्ट्रीय पहलवानों द्वारा यौन शोषण के आरोप लगाने पर चुप्पी साध ली। जिन पीएम मोदी ने मणिपुर में निर्वस्त्र घुमाई गई दो महिलाओं के साथ होने वाली दरिंदगी पर चुप्पी साध ली वह मोदी इजरायल पर हमास के हमले पर एकदम सक्रिय हो गए। निश्चित रूप से दुनिया में कहीं पर भी महिलाओं के साथ अन्याय या अत्याचार हो उसका विरोध होना ही चाहिए। पर मोदी को कुछ अपने देश की महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार को भी देख लेना चाहिए।

देश में वह हर कदम वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए उठाते हैं। यदि आज वह इजरायल की महिलाओं के प्रति चिंतित हैं तो यूक्रेन की महिलाओं के प्रति क्यों नहीं हैं ? मणिपुर मामले में जब जवाब देने के लिए उन्होंने गृह मंत्री को अधिकृत कर रखा था तो क्या इजरायल हमास युद्ध पर विदेश मंत्री को अधिकृत नहीं किया जा सकता था ? उन्हें तो बस घुमा फिरा कर किसी तरह से देश में मुस्लिमों के प्रति नफरत का माहौल बनाकर 2024 के चुनाव को हिन्दू मुस्लिम बनाना है। वह दूसरी बात ही है कि उनकी इस राजनीति के चलते भले ही देश दंगों के हवाले हो जाये। हमास-इजरायल युद्ध को इतना अमेरिका, फ़्रांस, अरब देशों के साथ ही इजरायल का मीडिया भी तूल नहीं दे रहा जितना कि भारत का मीडिया दे रहा है। क्या देश में और कोई मुद्दा रहा है नहीं ?

जगजाहिर है कि इजरायल के जमीन कब्जाने का विरोध गांधी, लोहिया वाजपेयी भी कर चुके हैं। यदि भारत के संबंध इजरायल से अच्छे हैं तो फिर अरब देशों से भी तो हैं। हमास के इजरायल की महिलाओं के साथ की गई दरिंदगी की हर भारतीय निंदा कर रहा है क्या हम हमास इजरायल युद्ध के नाम पर अपने देश का माहौल बिगाड़ लें। और यह हो रहा है। हमास इजरायल युद्ध के नाम पर भारतीय मुसलमानों के प्रति नफरत का माहौल बनाया जा रहा है।  देश में कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के साथ ही कई राज्यों में  फिलिस्तीन के पक्ष में आंदोलन शुरू हो चुका है। देश की सरकार इजरायल के पक्ष में है, पीएम मोदी तो खुलकर सामने आ गए हैं और देश में फिलिस्तीन के पक्ष में आंदोलन शुरू हो चुका है। ऐसे में माहौल तो बिगड़ेगा ही न। 

अपने देश में तो मोदी मणिपुर की महिलाओं के साथ होने वाली दरिंदगी पर चुप्पी साध गए थे। निर्वस्त्र महिलाओं के गुप्तांगों के साथ छेड़छाड़ करते हुए वीडियो वायरल होने पर भी उनकी गैरत नहीं जागी थी। तीन महीने तक मामले को दबाये रखा गया, वीडियो वायरल होने के बाद  एफआईआर दर्ज की गई थी। मणिपुर जलता रहा पर मोदी ने वहां के सीएम को नहीं हटाया।   हमास और इजरायल युद्ध को जिस तरह से मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में इतना तूल दिया जा रहा है। गोदी मीडिया डिबेट चला रहा है। उससे देश में माहौल बिगड़ने की आशंका हो गई है।

अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में तो इजरायल के विरोध तथा फिलीस्तीन के पक्ष हंगामा हो ही गया, साथ ही कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के साथ ही कई राज्यों में  फिलिस्तीन के पक्ष में आंदोलन शुरू हो चुका है। जिस तरह से जुम्मे की नमाज को देखते हुए दिल्ली और यूपी में पुलिस ने हाई अलर्ट किया उससे ऐसा लगा कि हमारे देश में हमास इजरायल युद्ध के नाम पर भारत के मुस्लिमों को उकसाया जा रहा हो।  

दरअसल इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष अरब आबादी पर यहूदियों को थोपने से उत्पन्न हुआ है। इस मामले पर गांधी जी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी थी। गांधी जी ‘हरिजन’ के 26 नवम्बर 1938 के अंक में यहूदियों के प्रति अपनी सहानुभूति जताने के साथ ही फिलिस्तीन में यहूदियों को बसाने को अन्यायपूर्ण बता चुके थे। गांधी जी ने अपने लेख में लिखा था कि जिस तरह इंग्लैंड अंग्रेजों का है, फ्रांस फ्रेंच लोगों का है उसी तरह फिलिस्तीन अरब के लोगों का है।  

इस विवाद की असली शुरुआत 1917 से मानी जाती है। दरअसल फिलिस्तीन क्षेत्र पर अधिकार मिलने के बाद 2 नवंबर, 1917 को ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश सचिव आर्थर बाल्फोर ने ब्रिटिश यहूदी समुदाय के प्रमुख लियोनेल वाल्टर रोथ्सचाइल्ड को एक पत्र भेजा, जिसमें फिलिस्तीन में यहूदियों के लिये ‘‘होमलैण्ड’’ की स्थापना की बात कही गई थी। दरअसल फिलिस्तीनी अरब मूल की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी थी। यह क्षेत्र भी 1923 से लेकर 1948 तक अंग्रेजों अधीन रहा। अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर यहूदी आप्रवासन की सुविधा दी। जो यहूदी यूरोप में नाजीवाद के अत्याचारों से भाग रहे थे उन्हें यहां पर बसाया गया। उस समय भी फिलिस्तीनियों ने ब्रिटेन द्वारा उनकी भूमि को यहूदी बाशिंदों को सौंपे जाने से उस पर कब्ज़ा होने के प्रति चिंता जताई थी। 

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