Sunday, December 8, 2024
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अब कलम टूटने लगी है

अब कलम टूटने लगी है

स्याही भी सूखने लगी है

जिधर देखो उधर 

अब आवाज दबने लगी है

दिन प्रति दिन 

अब किताब भी रूठने लगी है

पहरे दर पहरा 

अब कविता भी रोने लगी है ..

इस मुल्क में 

अब हवा भी साथ छोड़ने लगी है..

अब कलम टूटने लगी है

अब कलम टूटने लगी है..

के एम भाई 

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